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शरद पूर्णिमा आज: जाने क्या है इसका खास महत्व

शरद पूर्णिमा

भारत के पारंपरिक पंचांग में वर्षभर की पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा 2025 को सबसे शुभ और रहस्यमयी माना गया है। यह वह रात होती है जब चंद्रमा अपनी सम्पूर्ण कलाओं के साथ धरती पर उतरता प्रतीत होता है। प्राचीन ग्रंथों में इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ और ‘रास पूर्णिमा’ भी कहा गया है। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय तत्वों का संचार होता है, जो मनुष्य के तन और मन दोनों को संतुलित करने की अद्भुत शक्ति रखते हैं।

पौराणिक मान्यता और धार्मिक अर्थ

पुराणों के अनुसार, शरद पूर्णिमा 2025 वह अवसर है जब भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन की रासलीला रचकर भक्ति और प्रेम की पराकाष्ठा को मूर्त रूप दिया था। इसीलिए यह रात्रि केवल उपवास या पूजा का नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और भक्ति के संगम का प्रतीक है। देवी लक्ष्मी की उपासना भी इसी रात की जाती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन जागरण कर लक्ष्मी जी की आराधना करता है, उसके घर में वर्षभर समृद्धि का वास होता है।

विष्णु पुराण में उल्लेख है कि शरद ऋतु की इस पूर्णिमा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा अपने चरम पर होती है। चंद्रमा की किरणें जब पृथ्वी से टकराती हैं, तो उनमें अमृत-तुल्य ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि इस रात चांदनी में रखे गए दूध या खीर का सेवन विशेष रूप से शुभ और स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आस्था के साथ-साथ विज्ञान भी शरद पूर्णिमा 2025 को एक विशेष खगोलीय घटना के रूप में देखता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के काफी निकट होता है और उसकी चमक अपने उच्चतम स्तर पर होती है। रात का वातावरण ठंडा और निर्मल होता है, जिससे चंद्रकिरणें सीधी धरती पर पड़ती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इन किरणों में कैल्शियम और अन्य सूक्ष्म खनिज तत्व होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं।

खगोलविदों के अनुसार, यह वह समय होता है जब आकाश पूरी तरह स्वच्छ और नीला दिखाई देता है। नमी और तापमान का संतुलन ऐसा होता है कि यह मौसम परिवर्तन की शुरुआत का संकेत देता है। इसलिए इसे स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

परंपराएं और रीति-रिवाज

शरद पूर्णिमा की रात को भारतीय घरों में विशेष रूप से खीर बनाई जाती है। इस खीर को खुले आसमान के नीचे चांदनी में रखा जाता है ताकि चंद्रमा की किरणें उसमें उतर जाएं। सुबह उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टि से भी लाभकारी है।

उत्तर भारत में लोग इस रात को कोजागरी व्रत रखते हैं। ‘कोजागरी’ शब्द संस्कृत के ‘को जागर्ति’ से बना है, जिसका अर्थ है – “कौन जाग रहा है?” मान्यता है कि देवी लक्ष्मी इस रात आकाश से उतरकर उन घरों में जाती हैं, जहां लोग जागरण कर भक्ति में लीन रहते हैं। दक्षिण भारत में इसे कौमुदी उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जबकि बंगाल में इसे लक्ष्मी पूजा कहा जाता है।

रासलीला और सांस्कृतिक अर्थ

मथुरा, वृंदावन और बरसाना में इस दिन विशेष आयोजन होते हैं। श्रीकृष्ण की रासलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें गोपियों के प्रेम और कृष्ण की माधुर्य भक्ति का संदेश मिलता है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का उत्सव है।

लोकगीतों, नृत्य और संगीत से सजी यह रात भक्ति और आनंद का संगम बन जाती है। चांदनी के नीचे बजती बांसुरी और थिरकते पांव, मनुष्य और दिव्यता के बीच के अदृश्य सेतु की अनुभूति कराते हैं।

स्वास्थ्य और जीवनशैली से जुड़ा महत्व

आयुर्वेद के अनुसार, शरद ऋतु में शरीर की पित्त प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इस समय चंद्रमा की ठंडी किरणें शरीर में संतुलन लाने का कार्य करती हैं। इसीलिए इस दिन चांदनी में बैठना, या दूध-खीर का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। पुराने समय में लोग खुले आंगन में बैठकर चांदनी स्नान करते थे, जो मानसिक शांति और गहरी नींद के लिए सर्वोत्तम माना जाता था।

आधुनिक युग में शरद पूर्णिमा

आज के तेज़-तर्रार जीवन में शरद पूर्णिमा 2025 हमें प्रकृति के साथ फिर से जुड़ने का अवसर देती है। यह हमें याद दिलाती है कि तकनीक और व्यस्तता के बीच भी, चंद्रमा की कोमल रोशनी में सुकून खोजा जा सकता है। भारत के कई शहरों में आज भी इस दिन विशेष आयोजन होते हैं—सांस्कृतिक कार्यक्रम, ध्यान सत्र और सामूहिक भजन संध्या।

यह पर्व केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक सामूहिक अनुभव है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इसमें आस्था, विज्ञान, स्वास्थ्य और संस्कृति सब एक साथ समाहित हैं।

निष्कर्ष

शरद पूर्णिमा 2025 केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन की गहराई को समझने का माध्यम है। यह वह पल है जब प्रकृति और मनुष्य एक-दूसरे के करीब आते हैं, जब चंद्रमा न केवल आकाश में बल्कि मन के भीतर भी उजाला फैलाता है।

ऐसी रातें हमें यह अहसास कराती हैं कि सच्ची समृद्धि धन में नहीं, बल्कि शांति, संतुलन और सामंजस्य में है।

इस बार जब आप चांदनी में खीर का स्वाद लें, तो याद रखिए—यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समझ का परिणाम है। इस रहस्यमयी रात की चमक हर मनुष्य के भीतर की रोशनी को जागृत करती है।

और इसी भावना के साथ, भारत पल्स न्यूज आपको इस पूर्णिमा की शुभकामनाएं देता है—कि आपके जीवन में चांदनी की तरह शीतलता और आलोक बना रहे।