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असरानी का निधन: याद आएंगे शोले के जेलर साहब

भारतीय सिनेमा ने एक और महान कलाकार को खो दिया। असरानी — वह नाम जिसने दशकों तक दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी, अब सिर्फ यादों में रह गया। उनके निधन की खबर ने पूरी फिल्मी दुनिया को गहरे शोक में डाल दिया है। उनकी कॉमेडी, उनका अभिनय और उनका अंदाज़, सब कुछ भारतीय सिनेमा की अमर धरोहर बन चुका है।

हंसी के सम्राट का सफर

असरानी को अक्सर लोग “हंसी के सम्राट” कहकर पुकारते थे, और ये उपाधि उन्हें यूं ही नहीं मिली। 1970 और 80 के दशक में जब कॉमेडी फिल्मों में स्लैपस्टिक हंसी का दौर था, तब असरानी ने अपने अभिनय से हंसी को एक नई पहचान दी। उनका चेहरा मंच पर आते ही दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान ला देता था।

शोले’ में जेलर का किरदार निभाकर उन्होंने जो अमिट छाप छोड़ी, वह आज भी हर सिनेप्रेमी के दिल में बसी है। उनका संवाद — “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” — आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। उस किरदार में असरानी ने सिर्फ अभिनय नहीं किया, बल्कि हास्य की भाषा को जीया था।

कॉमेडी में गंभीरता की परिभाषा

असरानी का हुनर सिर्फ हंसाने तक सीमित नहीं था। वह जानते थे कि हास्य भी एक गंभीर कला है, जिसमें समय की सटीक समझ और संवाद की लय ज़रूरी है। यही वजह थी कि उन्होंने चाहे ‘चुपके चुपके’ में हो या ‘गोलमाल’ में, अपने किरदारों को हमेशा गहराई दी। उनका अभिनय दर्शाता था कि कॉमेडी सिर्फ मज़ाक नहीं, बल्कि भावनाओं की एक परत है।

उन्होंने कई पीढ़ियों के अभिनेताओं के साथ काम किया — राजेश खन्ना से लेकर सलमान खान तक। हर दौर में उनकी प्रासंगिकता बनी रही। यही एक सच्चे कलाकार की पहचान होती है।

फिल्मों से रंगमंच तक

कम ही लोग जानते हैं कि असरानी ने अपना करियर थिएटर से शुरू किया था। जयपुर में जन्मे असरानी बचपन से ही अभिनय के प्रति जुनूनी थे। उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से प्रशिक्षण लिया और वहीं से बॉलीवुड की राह पर कदम रखा।
थिएटर ने उन्हें मंच की समझ दी, और फिल्मों ने उन्हें लोकप्रियता का आसमान।

शोले से आगे की चमक

‘शोले’ के जेलर साहब बनकर असरानी ने इतिहास रच दिया, लेकिन उनकी प्रतिभा वहीं नहीं रुकी। उन्होंने ‘अभिमान’, ‘आप की कसम’, ‘पति पत्नी और वो’, ‘छोटी बहू’, और ‘हम आपके हैं कौन’ जैसी फिल्मों में भी अपने अभिनय से रंग भरे।
हर फिल्म में उनका किरदार अलग था — कहीं वो भोले-भाले सरकारी बाबू थे, कहीं चालाक दोस्त, तो कहीं बेबस पिता। लेकिन हर बार वो असरानी ही थे, जो किरदार को जीवंत बना देते थे।

निजी जीवन और सादगी

असरानी के जीवन की सबसे खूबसूरत बात थी उनकी सादगी। शोहरत के शिखर पर होने के बावजूद वे जमीन से जुड़े इंसान रहे। उन्होंने कभी अपने आपको “स्टार” नहीं कहा, बल्कि हमेशा “एक्टर” कहलाना पसंद किया। उनका मानना था कि कला का असली मूल्यांकन तब होता है जब लोग सालों बाद भी आपके किरदारों को याद करें।

असरानी और नई पीढ़ी

आज जब नई पीढ़ी के कॉमेडियंस मंच पर आते हैं, तो उनमें कहीं न कहीं असरानी की झलक दिखती है। वे समय के साथ बदले, लेकिन अपनी जड़ों से कभी नहीं हटे। डिजिटल युग में भी उनका हास्य, संवादों की सटीकता और टाइमिंग का कमाल आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

फिल्मी दुनिया में शून्य

उनके निधन से फिल्मी दुनिया में एक ऐसा खालीपन आ गया है, जिसे भर पाना मुश्किल होगा। हंसी की वो खनक जो उन्होंने पर्दे पर छोड़ी थी, अब सिर्फ रीलों में बचेगी। उनके साथी कलाकारों और प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि असरानी जैसे कलाकार बार-बार नहीं जन्म लेते।

यादों में असरानी

जब भी कोई फिल्म प्रेमी पुराने सिनेमा की बात करेगा, असरानी का नाम ज़रूर आएगा। वे सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक युग थे जिसने भारतीय सिनेमा को अपनी हंसी से सजाया। उनकी कला ने यह सिखाया कि मनोरंजन में गहराई कैसे लाई जा सकती है।

उनकी मुस्कान, उनकी आंखों की चमक और उनकी आवाज़ — सब मिलकर एक ऐसी विरासत बनाते हैं जिसे आने वाली पीढ़ियाँ याद रखेंगी।

असरानी, हंसी के सम्राट, अब भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके किरदार, उनकी संवाद अदायगी और उनकी सहज कॉमेडी हमेशा जिंदा रहेगी।

भारत पल्स न्यूज की पूरी टीम इस महान कलाकार को श्रद्धांजलि अर्पित करती है। उनके योगदान को शब्दों में बाँधना असंभव है। उन्होंने सिनेमा को मुस्कुराने की ताकत दी, और यही उनकी अमर पहचान रहेगी।