तो ये महज़ इत्तेफ़ाक है?
एक नहीं, दो नहीं — देश के अलग-अलग कोनों से लगातार ऐसी धर्म परिवर्तन की खबरें आती हैं जहाँ हिंदू बेटियाँ पहले प्यार के जाल में फंसाई जाती हैं, फिर शादी का झूठा सपना दिखाया जाता है, और आख़िर में एक दिन अचानक उनका नाम, उनका धर्म, उनकी पूरी पहचान बदल दी जाती है।
सवाल ये है — क्या ये सिर्फ प्यार है, या कोई बहुत गहरी साजिश है?
शिकार पहले से तय हैं
ये बेटियाँ, जो कॉलेज जा रही हैं, कोचिंग जा रही हैं, या सोशल मीडिया पर किसी अजनबी से मुस्कुरा कर बात करना सीख रही हैं — वो सब टारगेट पर हैं। कोई उन्हें किताबों की बात करके फांसता है, कोई जॉब का ऑफर देकर पास आता है, और कोई सीधे ‘मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ’ कहकर उनके भरोसे को हथियार बनाता है।
जब ये लड़कियाँ फंसती हैं, तो खेल शुरू होता है। एक नकली पहचान, एक नया नाम, और एक झूठी मोहब्बत — फिर शादी का झांसा, और अंत में धर्म परिवर्तन। कहीं ‘खुशी से’ बयान दिलवाया जाता है, कहीं डर से, तो कहीं ब्लैकमेल करके।
सवाल ये है — एक जैसी स्क्रिप्ट, अलग-अलग शहरों में, अलग-अलग लड़कियों के साथ कैसे दोहराई जा रही है? ये कोई जाल है या पूरी मशीनरी?
सरकार कहाँ है? क़ानून क्या कर रहा है?
कहने को तो ‘धर्मांतरण विरोधी कानून’ है। लेकिन उस कागज़ की औकात क्या है जब पीड़िता खुद डरी हुई हो? जब उसके माँ-बाप थाने में घंटों चक्कर काटते रहें और कोई सुनवाई न हो?
कानून कहता है कि धर्म बदलने से पहले प्रशासन को बताओ।
तो पूछिए — इन मामलों में कितनी बार मजिस्ट्रेट को कोई जानकारी दी गई?
जवाब साफ है — ये काम चोरी-छिपे, सुनियोजित तरीके से किए जा रहे हैं।
माँ-बाप का टूटता भरोसा, समाज की चुप्पी
अब माँ-बाप अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से पहले सोचने लगे हैं। हर अनजान कॉल डराने लगा है। हर दोस्ती सवाल बन गई है।
और समाज? या तो वो चुप है, या आँख मूँदकर ‘प्यार किया तो डरना क्या’ टाइप झूठी लिबरल बातों में खोया हुआ है।
सवाल ये है — जब बेटी को फुसलाकर, उसकी पहचान मिटाकर, उसे ‘नई ज़िंदगी’ दी जाती है, तो वो स्वतंत्रता है या गद्दारी?
NGO या धर्म परिवर्तन के एजेंट?
कुछ तथाकथित समाजसेवी संगठन इन पीड़ित लड़कियों को ‘सुरक्षा’ देने के नाम पर उनके साथ मिल जाते हैं। फिर वही संगठन कोर्ट में खड़े होकर बयान दिलवाते हैं कि ‘ये सब स्वेच्छा से हुआ’।
कौन फंड कर रहा है इन्हें? क्या ये संगठन धार्मिक एजेंडा चला रहे हैं? क्या इन्हें विदेश से पैसा आता है?
जवाब की तलाश ज़रूरी है।
ये सिर्फ अपराध नहीं, विचारधारा की लड़ाई है
अगर कोई लड़की अपनी मर्ज़ी से धर्म बदलती है, तो ठीक है। लेकिन जब धर्म परिवर्तन से पहले उसे प्यार का नाटक करके फंसाया जाता है, उसका आत्मविश्वास तोड़ा जाता है, और फिर उसके जीवन का रिमोट किसी और के हाथ में दे दिया जाता है —
तो वो स्वतंत्रता नहीं, मानसिक शिकार है।
और अगर ये पैटर्न दोहराया जा रहा है, तो ये सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि एक विचारधारा है — जो इस देश की संस्कृति, परिवार और सामाजिक तानेबाने पर हमला कर रही है।
मीडिया की भूमिका: कब तक ‘प्यार’ का ड्रामा दिखाओगे?
बड़ी-बड़ी मीडिया संस्थाएँ इन खबरों को या तो दबा देती हैं, या उन्हें एक सनसनीखेज लव-स्टोरी बनाकर दिखाती हैं। कोई ये नहीं पूछता कि इन लड़कियों का भविष्य क्या होगा?
वो जो अपने माँ-बाप की आँखों से गिर गईं, समाज की नज़रों में संदिग्ध हो गईं, और जिनका जीवन एक नई पहचान में कैद हो गया — उनके लिए कौन लड़ेगा?
राजनीति: मुद्दे से ज़्यादा बयान
जहाँ एक पक्ष कहता है कि ‘ये सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है’, वहीं दूसरा पक्ष इसे राष्ट्र की सुरक्षा का सवाल बता रहा है।
लेकिन असली सवाल ये है — इन लड़कियों को बचाने के लिए, इस सुनियोजित धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए क्या किया जा रहा है?
बयान देने से समस्या हल नहीं होती। ज़मीन पर जांच, गिरफ्तारी और सख़्त कार्यवाही दिखनी चाहिए। नहीं तो ये ‘प्रेम के नाम पर पहचान मिटाने का कारोबार’ बढ़ता ही जाएगा।
जनता का गुस्सा फूटने की कगार पर
गांव से लेकर शहर तक, लोग अब समझ रहे हैं कि ये सिर्फ एक लड़की का मामला नहीं है। ये उनका अपना घर, अपनी बेटी, अपनी संस्कृति, और अपनी पहचान का सवाल है।
और जब जनता की सहनशीलता का बाँध टूटता है, तो इतिहास गवाह है — गूंगे कानूनों और बहरे सिस्टम की नींव हिल जाती है।
ये गद्दारी है — नाम बदल दो, पर साजिश नहीं छिपती
इस देश में किसी को अपना धर्म चुनने की पूरी आज़ादी है। लेकिन जब धर्म परिवर्तन धोखे से हो, जब बेटियों को फंसाकर उनकी मर्जी को तोड़ा-मरोड़ा जाए —
तो वो सिर्फ धोखा नहीं, सीधा हमला है।
भारत पल्स न्यूज यह स्पष्ट करता है —
हम ‘प्रेम’ के खिलाफ नहीं हैं,
लेकिन ‘प्रेम’ की आड़ में चल रही गद्दारी को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
ये खबरें हम रुकने नहीं देंगे, चाहे किसी को कितनी भी तकलीफ़ हो।
क्योंकि ये पत्रकारिता है — और इसका काम सत्ता से नहीं, सच्चाई से डरना होता है।
टीम : भारत पल्स न्यूज
“सच, करीब से दिखता है।”
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