भाद्रपद मास की जन्माष्टमी तिथि इस बार ऐसे संयोग के साथ आई है कि भक्ति और उल्लास का रंग और गहरा हो गया है। 16 अगस्त की रात ठीक 11 बजकर 59 मिनट पर श्रद्धालु मानेंगे कि व्रजभूमि में कान्हा का जन्म हो चुका है। जैसे ही यह घड़ी आएगी, मंदिरों की घंटियां, शंख और भजन एक साथ गूंज उठेंगे।
मथुरा का रौनक भरा माहौल
मथुरा की गलियां इस समय किसी चित्रकार के कैनवास जैसी दिख रही हैं। हर मोड़ पर रंग-बिरंगी झालरें लटक रही हैं, मंदिरों के प्रवेश द्वार फूलों की लड़ियों से सजे हैं और दुकानों में मोरपंख, बांसुरी, मिट्टी के मटके और बाल गोपाल की प्रतिमाएं बिक रही हैं। जन्मस्थान मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की कतारें पहले से लगनी शुरू हो गई हैं। सुरक्षा बल और स्वयंसेवक भीड़ प्रबंधन में जुटे हैं।
वृंदावन में भक्ति का उमंग
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में रंग-बिरंगी रोशनी की सजावट की गई है। यहां ‘अष्टयाम सेवा’ की परंपरा के तहत भजन और कीर्तन रातभर चलता रहेगा। मंदिर की परिक्रमा मार्ग पर हर कुछ कदम पर भजन मंडलियां बैठी हैं, जो पारंपरिक धुनों पर रासलीला का माहौल बना रही हैं।
महूरत और नक्षत्र का संगम
हिंदू पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 16 अगस्त सुबह 9:15 बजे से शुरू होकर 17 अगस्त सुबह 10:05 बजे समाप्त होगी। इसी अवधि में रोहिणी नक्षत्र 16 अगस्त सुबह 3:40 बजे से 17 अगस्त सुबह 4:30 बजे तक रहेगा। कृष्ण जन्म का विशेष समय 16 अगस्त की रात 11:59 बजे से 12:44 बजे तक रहेगा। भक्त इसी समय को सबसे पवित्र मानकर जन्मोत्सव मनाते हैं।
घर-घर में सजते पालने
देशभर में लोग घरों में छोटे-छोटे पालने सजा रहे हैं। महिलाएं रंगीन कपड़ों, मोतियों और फूलों से इन्हें सजाती हैं। बाल गोपाल की मूर्ति को स्नान के बाद पीताम्बर, मोरपंख और चांदी के मुकुट से सजाया जाएगा। पूजा में पंचामृत स्नान, धूप-दीप और तुलसी दल चढ़ाने की परंपरा निभाई जाएगी।
भोग और प्रसाद की तैयारी
इस अवसर पर माखन-मिश्री, पंजीरी, खीर, सूखे मेवे और विभिन्न मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। कई घरों में रातभर भजन संध्या और कृष्ण लीला की कथा का आयोजन होता है। ग्रामीण इलाकों में लोग सामूहिक रूप से मंदिरों में एकत्र होकर सामूहिक आरती करते हैं।
महाराष्ट्र में दही-हांडी का जोश
मुंबई, ठाणे और पुणे में कल दही-हांडी उत्सव का रोमांच देखने को मिलेगा। ऊंचाई पर लटकी मटकियों तक पहुंचने के लिए गोविंदा पथक मानव पिरामिड बनाएंगे। भीड़ में उत्साह का शोर और मटकी फूटने पर दही-माखन की बौछार लोगों को भिगो देगी।
गुजरात और पूर्वी भारत की परंपराएं
गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर में कल समुद्री हवाओं के बीच भव्य श्रृंगार और महाआरती होगी। मंदिर परिसर में भक्तों के लिए विशेष दर्शन की व्यवस्था की गई है।
ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर से झूलन यात्रा निकलेगी, जिसमें सजे हुए रथों पर राधा-कृष्ण की झांकियां नगर भ्रमण करेंगी।
दक्षिण भारत में गोकुलाष्टमी
कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में जन्माष्टमी को ‘गोकुलाष्टमी’ के नाम से मनाया जाता है। यहां घरों के आंगन में चावल के आटे से छोटे पांव के निशान बनाए जाते हैं, जिन्हें मान्यता है कि कान्हा स्वयं पधारे हैं। छोटे बच्चे श्रीकृष्ण की वेशभूषा में झांकियों और नृत्यों में भाग लेते हैं।
डिजिटल माध्यम से जुड़ेंगे भक्त
इस बार भारत पल्स न्यूज समेत कई डिजिटल प्लेटफॉर्म मथुरा, वृंदावन, द्वारका और पुरी से लाइव प्रसारण करेंगे। इससे जो लोग यात्रा नहीं कर पा रहे, वे भी घर बैठे भक्ति के इस माहौल का अनुभव कर सकेंगे।
आस्था और एकता का पर्व
जन्माष्टमी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह सांस्कृतिक एकजुटता का भी उत्सव है। अलग-अलग भाषाएं, पहनावे और परंपराएं होते हुए भी इस दिन पूरे देश का भाव एक होता है—कृष्ण प्रेम और धर्म की रक्षा का संदेश।
कल आधी रात जब जन्म की घोषणा होगी, तब मथुरा से लेकर कन्याकुमारी तक एक ही स्वर गूंजेगा—
“नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की।”
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