
देश में विमान दुर्घटनाओं की श्रृंखला अभी थमी नहीं है। सोमवार सुबह मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक और संभावित बड़ा हादसा होते-होते टल गया। इंडिगो एयरलाइंस की दिल्ली से आ रही फ्लाइट 6E-2456 ने लैंडिंग के दौरान अचानक रनवे पर मौजूद एक तकनीकी गाड़ी को बेहद करीब से देखा और पायलट की त्वरित सूझ-बूझ के चलते टक्कर टाल दी गई।
यह घटना ऐसे समय पर सामने आई है जब बीते छह महीनों में भारत में विमानन सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठ चुके हैं। DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) की हालिया रिपोर्टों में भी संकेत मिले हैं कि कई एयरलाइंस ऑपरेशनल प्रेशर में सुरक्षा मानकों से समझौता कर रही हैं।
मुंबई की इस घटना ने फिर एक बार नागरिक उड्डयन मंत्रालय को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
क्या हुआ था रनवे पर?
जानकारी के मुताबिक, सोमवार सुबह 9:20 बजे इंडिगो की फ्लाइट जब लैंडिंग मोड में थी, तभी रनवे पर ग्राउंड मेंटेनेंस टीम की एक तकनीकी गाड़ी निर्धारित समय से ज़्यादा देर तक मौजूद थी।
एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) ने तुरंत पायलट को सतर्क किया, लेकिन विमान पहले ही अंतिम लैंडिंग पथ में था। चमत्कारी रूप से, पायलट ने रनवे के बिल्कुल अंतिम छोर पर विमान उतारते हुए न सिर्फ हादसा टाला बल्कि सभी 183 यात्रियों की जान भी बचाई।
घटना के बाद एयरपोर्ट संचालन ने रनवे-27 को अस्थायी रूप से बंद कर जांच शुरू कर दी है।
लगातार बढ़ती घटनाएं: आंकड़े चौंकाते हैं
बीते एक वर्ष में भारत में कुल 36 विमानन से जुड़ी घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें 11 मामलों में यात्रियों की जान को सीधा खतरा हुआ। इनमें से 7 घटनाएं पिछले तीन महीनों में हुई हैं — दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद और अब मुंबई जैसे मेट्रो शहर इसके केंद्र में रहे हैं।
इनमें से ज़्यादातर घटनाएं या तो टेक्निकल फेल्योर से जुड़ी थीं या ग्राउंड-एटीसी कोऑर्डिनेशन में गड़बड़ी से।
क्या यह सिर्फ सिस्टम फेल्योर है? या कुछ और?
इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। देश में बढ़ती हवाई यात्रा और बजट एयरलाइनों की मांग ने उड्डयन क्षेत्र में जबरदस्त दबाव डाला है। एक ओर DGCA के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, वहीं एयरलाइंस लागत कम करने के चक्कर में मेंटेनेंस शेड्यूल तक छोटा कर रही हैं।
एक वरिष्ठ एयर ट्रैफिक कंट्रोलर नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं:
“हमारी टीम में पिछले छह महीनों में स्टाफ की भारी कमी हुई है। ट्रैफिक बढ़ रहा है, लेकिन कंट्रोल टावरों में उतने लोग नहीं हैं जितने होने चाहिए।”
उधर एयरपोर्ट ग्राउंड स्टाफ की ट्रेनिंग और सुरक्षा प्रोटोकॉल को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: संसद में उठ सकता है मुद्दा
मुंबई की घटना के बाद विपक्ष ने सरकार को घेरा है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा,
“ये सरकार सिर्फ रनवे की लंबाई गिनवाती है, लेकिन सुरक्षा की चौड़ाई नहीं देखती। DGCA को खुद रिस्क में डाला जा रहा है।”
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा:
“बचाव के नाम पर भगवान का शुक्र है कहना हमारी नीति नहीं हो सकती। सिस्टम में बड़ी दरारें हैं।”
इस मुद्दे पर संसद के मानसून सत्र में बहस तय मानी जा रही है।
संवैधानिक ढांचे में DGCA की भूमिका और सीमाएं
DGCA भारत सरकार का वह निकाय है जो नागरिक विमानन को रेगुलेट करता है। लेकिन इसे संसद के प्रति सीधे जवाबदेह नहीं बनाया गया है। संसद के पास DGCA को रिपोर्ट करने का अधिकार सीमित है, जिसकी वजह से ज़्यादा पारदर्शिता नहीं आ पाती।

जानकारों का मानना है कि DGCA की संरचना को स्वायत्त और जवाबदेह दोनों बनाने की ज़रूरत है — जैसे RBI या TRAI।
जनता में भरोसा डगमगाया?
मुंबई एयरपोर्ट पर हुई घटना के बाद यात्रियों की प्रतिक्रिया तीखी रही। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लिखा कि वे अब हवाई सफर से पहले डरते हैं।
इंडिगो की इस फ्लाइट में मौजूद एक यात्री रश्मि सिंह ने बताया,
“जब लैंडिंग के वक्त झटका लगा और पायलट ने तेज ब्रेक लगाया, तो कुछ सेकंड के लिए लगा कि अब सब खत्म हो जाएगा।”
कई यात्रियों ने ट्विटर और इंस्टाग्राम पर DGCA से जवाब मांगा है, लेकिन अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
आगे का रास्ता: क्या होना चाहिए?
- स्वतंत्र जांच समिति का गठन — मुंबई की घटना की जांच सिर्फ एयरपोर्ट अथॉरिटी या DGCA न करे। इसमें स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञों को शामिल किया जाए।
- पायलट और ग्राउंड स्टाफ की रिफ्रेशर ट्रेनिंग अनिवार्य की जाए।
- एटीसी में स्टाफिंग बढ़ाने के लिए इमरजेंसी रिक्रूटमेंट ड्राइव चलाया जाए।
- हर घटना की रिपोर्ट सार्वजनिक हो, ताकि जनता को भरोसा लौटे।
- राज्यसभा/लोकसभा की स्थायी समिति के अंतर्गत DGCA को रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
निष्कर्ष
मुंबई की घटना एक गंभीर चेतावनी है। एक और सेकंड की देरी होती, तो यह रिपोर्ट एक दुर्घटना की खबर होती। देश में विमान दुर्घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं, बल्कि सिस्टमिक लापरवाही का संकेत बन रही हैं।
हर बार कह देना कि “भगवान का शुक्र है हादसा टल गया”, एक दिन खुद उस भगवान को थका देगा।
अब वक्त है कि नागरिक उड्डयन को सिर्फ विकास और टिकट के आंकड़ों से न मापा जाए, बल्कि हर उड़ान के पीछे मौजूद भरोसे को बचाया जाए — क्योंकि जब आसमान का भरोसा हिलता है, ज़मीन पर बैठी जनता भी डर जाती है।
रिपोर्टिंग: भारत पल्स न्यूज़ डेस्क, मुंबई
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