
हरिद्वार का सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र कभी उत्तराखंड में रोजगार का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता था। यहां की फैक्ट्रियों में हज़ारों युवा अपने बेहतर भविष्य की उम्मीद लिए आते हैं। पर अब इस क्षेत्र में मेहनत और योग्यता से ज़्यादा चमचागीरी (चापलूसी) का सिक्का चलता दिख रहा है। नतीजा यह है कि जो कर्मचारी अपने काम में निपुण और ईमानदार हैं, वे हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं और मनमर्जी का शिकार बनते हैं।
भीतर ही भीतर सुलगता आक्रोश
कई फैक्ट्रियों में भारत पल्स न्यूज को मिली जानकारियों के अनुसार, अधिकारी वर्ग के इर्द-गिर्द तने रहने वाले चापलूस कर्मचारियों की फौज तैयार हो चुकी है। ये लोग अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति के लिए न केवल सीनियर्स की बेमतलब की हां में हां मिलाते हैं, बल्कि ईमानदार कर्मियों की शिकायतें भी गढ़ते हैं।
यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे कैंसर की तरह पूरे सिडकुल क्षेत्र में फैल चुकी है। काम करने वाले असली लोग या तो चुपचाप सब सहने को मजबूर हैं या फिर हताश होकर नौकरी छोड़ने की सोच रहे हैं।
योग्यता का गला घोंट रही चमचागीरी
जहां एक ओर कंपनियां गुणवत्तापूर्ण प्रोडक्शन और टाइमलाइन को लेकर दिखावटी सख्ती बरतती हैं, वहीं दूसरी ओर उनके अपने दफ्तरों में चापलूसी का नंगा नाच चल रहा है।

भारत पल्स न्यूज की पड़ताल में सामने आया कि कई मैन्युफैक्चरिंग यूनिटों में प्रमोशन का सबसे बड़ा मानक बॉस के प्रति अंध भक्ति और मीठी बातें हैं। काबिल लोग फाइलों में ही दबे रहते हैं, और जो रोज हाजिरी लगाते हैं ‘सर-सर’ कहते हुए, वही बोनस और इन्क्रीमेंट ले जाते हैं।
मानसिक शोषण की नई परिभाषा
इस माहौल ने ईमानदार कर्मचारियों के लिए मानसिक यातना जैसा वातावरण बना दिया है। एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा —
“हम सुबह से शाम तक मशीनों के साथ जूझते हैं, लेकिन प्रमोशन तो उसी का होता है जो बॉस के साथ चाय पर टाइम पास करता है। अगर आवाज उठाएं तो उल्टा हमें ही टारगेट कर लेते हैं।”
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां सच बोलने या काम की कमियों की ओर इशारा करने पर कर्मियों को अलग-अलग शिफ्ट में डाल दिया गया, या फिर ऐसी जिम्मेदारियां थमा दी गईं जिनसे उनका प्रदर्शन खुद ही गिर जाए।
भारत पल्स न्यूज की पड़ताल में सामने आया सच

भारत पल्स न्यूज ने जब इस मुद्दे पर सिडकुल की कुछ नामचीन कंपनियों में अंदरखाने की पड़ताल की, तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
- HR विभाग से लेकर प्रोडक्शन हेड तक के बीच मजबूत चमचों का नेटवर्क है, जो सारी सूचनाएं एक दूसरे तक पहुंचाते हैं।
- कई बार ईमानदार कर्मचारी की छोटी सी गलती को इतना बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है कि उसे नौकरी छोड़ने तक की नौबत आ जाती है।
- दूसरी तरफ जिनका ‘नेटवर्क’ मज़बूत है, उनकी बड़ी-बड़ी गलतियां भी ‘मैनेज’ हो जाती हैं।
जल्द उठेगा ये मुद्दा
खुशखबरी यह है कि भारत पल्स न्यूज जल्दी ही इस पूरे मसले को सिडकुल अथॉरिटी और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष रखने जा रहा है। उम्मीद है कि इस आवाज़ से ईमानदार कर्मचारियों को जल्द राहत मिलेगी और उन्हें न्याय मिल सकेगा।
इसके साथ ही सामाजिक संस्थाओं और ट्रेड यूनियनों ने भी चेताया है कि यदि जल्द स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो वे व्यापक स्तर पर प्रदर्शन की तैयारी करेंगे।
आखिर कब सुधरेगा सिस्टम?
सिडकुल में बढ़ती चमचागीरी की इस प्रवृत्ति ने वहां की कार्य संस्कृति को खोखला कर दिया है। लंबे समय तक यह हालात रहे तो न सिर्फ कर्मचारियों का मनोबल गिरेगा, बल्कि कंपनियों की उत्पादकता पर भी बुरा असर पड़ेगा।
ईमानदारी और काबिलियत को हाशिए पर डालकर, चापलूसी के दम पर सिस्टम चलाने से अंततः कंपनियों को ही नुकसान होगा। यह जरूरी है कि प्रशासन, कंपनियों के बोर्ड और श्रम संगठन मिलकर ऐसी संस्कृति पर लगाम लगाएं।
निष्कर्ष
हरिद्वार का सिडकुल कभी उद्योगों का गढ़ माना जाता था। लेकिन वहां व्याप्त चमचागीरी ने ईमानदार और मेहनती कर्मचारियों की कमर तोड़ कर रख दी है। अब वक्त आ गया है कि इस बीमारी पर सीधा प्रहार हो।
भारत पल्स न्यूज इस पूरे मामले पर अपनी पैनी नज़र बनाए हुए है और भविष्य में भी ऐसी ज़मीनी हकीकतों को उजागर करता रहेगा।
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