हरियाली तीज एक ऐसा पर्व है जो सिर्फ उपवास या श्रृंगार तक सीमित नहीं है। इसके पीछे एक गहरी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक परंपरा जुड़ी हुई है। इस साल हरियाली तीज 27 जुलाई 2025, रविवार को मनाई जाएगी। सवाल है — क्यों मनाते हैं इसे? क्या महत्व है इस दिन का? और इस बार तारीख क्या कहती है?
चलिए, एक-एक परत खोलते हैं।
सबसे पहले — हरियाली तीज की तारीख 26 जुलाई क्यों?
हरियाली तीज हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 26 जुलाई की रात 11:26 बजे शुरू होकर 27 जुलाई की रात 11:35 बजे तक है।
हिंदू धर्म में व्रत-त्योहार उस दिन पड़ते हैं जिस दिन सूर्योदय के समय संबंधित तिथि हो। इस बार सूर्योदय पर तृतीया 26 जुलाई को रहेगी, इसलिए हरियाली तीज 26 जुलाई को मनाई जाएगी।
धार्मिक मान्यता: पार्वती की तपस्या और शिव की स्वीकृति
हरियाली तीज की जड़ें बहुत गहरी हैं — ये सिर्फ पूजा नहीं, प्रतीक्षा और तप का पर्व है।
मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। शिव ने पहले पार्वती की साधना को स्वीकार नहीं किया। लेकिन माता ने हार नहीं मानी।
कहते हैं, उन्होंने 108 जन्मों तक तप किया, और अंततः 108वें जन्म में शिव ने उन्हें स्वीकार कर लिया। हरियाली तीज इसी मिलन की याद में मनाई जाती है — जब आस्था, समर्पण और प्रेम की जीत होती है।
‘हरियाली’ क्यों? सिर्फ नाम नहीं, संकेत है मौसम का
इस तीज को ‘हरियाली’ तीज कहने के पीछे स्पष्ट संकेत है — सावन का महीना और उसकी हरियाली। यह समय होता है जब बारिश की वजह से धरती हरी चादर ओढ़ लेती है। खेत, बाग, जंगल — सब जीवंत हो उठते हैं।
इसलिए ये पर्व सिर्फ धार्मिक नहीं, प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक है।
परंपराएं: व्रत, कथा, मेहंदी और झूले
हरियाली तीज पर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं — यानी पूरे दिन बिना पानी के उपवास। वे शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, व्रत कथा सुनती हैं, और पारंपरिक गीत गाती हैं।
पूजा के बाद महिलाएं आपस में सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी और मिठाई बांटती हैं — जिसे ‘तीज की सौगात’ कहते हैं।
इस दिन झूला झूलना, सावन के गीत गाना, और हरे रंग के कपड़े पहनना आम परंपरा है। कई जगहों पर तीज मेलों का आयोजन भी होता है।
राज्य दर राज्य: कहां कैसे मनाई जाती है हरियाली तीज
- राजस्थान: जयपुर में तीज माता की रथयात्रा निकलती है। सैकड़ों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं।
- उत्तर प्रदेश और बिहार: लोकगीत, सामूहिक व्रत और महिलाएं घरों में एकत्र होकर पूजा करती हैं।
- दिल्ली और NCR: कॉलोनियों और मंदिरों में तीज के विशेष आयोजन होते हैं। महिलाएं पार्कों में मिलती हैं, झूले लगते हैं।
हरियाली तीज अब सिर्फ ग्रामीण भारत तक सीमित नहीं, शहरी जीवन में भी पूरी गरिमा से शामिल हो चुका है।
जनता की बात: आज की स्त्री और तीज
हमने हरियाणा, दिल्ली और बनारस में कुछ महिलाओं से बात की। उनके जवाब बदलते समाज की सोच को दिखाते हैं।
रितु यादव, 32, गुरुग्राम:
“पहले सोचती थी ये सब पुराने ज़माने की बात है। लेकिन अब लगता है कि ये दिन खुद को याद दिलाने के लिए है कि रिश्ते सिर्फ सुविधा नहीं, जिम्मेदारी और भावना भी हैं।”
सरला देवी, 58, पटना:
“हमारे जमाने में तीज का मतलब होता था खुद से ऊपर उठकर घर के लिए प्रार्थना करना। आज भी वही करता हूँ। फर्क बस यह है कि अब बहू-बेटियां सब साथ करती हैं।”
मौसम, शरीर और तीज — वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है
सावन का महीना शरीर के लिए बदलाव का समय होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह मौसम शरीर को डिटॉक्स करने का समय होता है। उपवास शरीर को हल्का करता है, मानसिक एकाग्रता बढ़ाता है।
वहीं, प्रकृति की हरियाली मन को शांत करती है। इसलिए यह त्योहार शरीर, मन और प्रकृति — तीनों के संतुलन का समय भी है।
आधुनिक संदर्भ: सोशल मीडिया और तीज
आजकल तीज सिर्फ मंदिर और आंगन तक नहीं, इंस्टाग्राम और यूट्यूब तक पहुंच चुका है। लोग अपने श्रृंगार, झूला, मेहंदी और व्रत की तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हैं।
इस पर कुछ लोग तंज भी करते हैं कि “यह पर्व अब प्रदर्शन बन गया है।” लेकिन दूसरी ओर कई युवतियों का कहना है कि यही तरीका उन्हें परंपरा से जोड़ता है।
निष्कर्ष: हरियाली तीज — आस्था, पर्यावरण और नारी शक्ति का संगम
हरियाली तीज कोई साधारण पर्व नहीं है। यह एक ऐसा जीवंत प्रतीक है भारतीय स्त्री की श्रद्धा, शक्ति और संवेदना का।
27 जुलाई को जब देश भर में महिलाएं झूला झूलेंगी, व्रत रखेंगी, शिव-पार्वती की पूजा करेंगी — तो वो परंपरा को आगे बढ़ाने का काम करेंगी। ये केवल धर्म नहीं, संस्कार और प्रकृति प्रेम का संदेश है।
हरियाली तीज हमें ये याद दिलाती है कि भारतीय परंपराएं समय के साथ बदलती नहीं, बल्कि और गहराई से रच-बस जाती हैं।
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