
भारत पल्स न्यूज की एक्सक्लूसिव पेशकश गद्दारी करबे के इस अध्याय में आज हवस का एक ऐसा कड़वा सच उधेड़ रहे हैं जो सिर्फ अपराध की कहानी नहीं, बल्कि रिश्तों की लाश पर रखे हुए सवालों का मेला है।
सोचिए — एक मां, जिसने बच्चे को नौ महीने अपनी कोख में रखा, वही उसे मौत के मुंह में क्यों धकेल देती है? एक बाप, जिसकी उंगली पकड़कर बच्चा चलना सीखता है, वही उसकी गर्दन क्यों मरोड़ देता है?
क्या हवस, पैसा या जमीन इतनी बड़ी चीजें हैं कि उनकी खातिर औलाद की कब्र खोद दी जाए?
हवस की हवेली में रिश्तों की लाश
हमारी सभ्यता में परिवार की नींव भरोसे पर खड़ी है।
मगर जब वही भरोसा हवस और लालच की नंगी दीवार पर सिर पटकने लगे तो भरोसे की मिट्टी भी खून से सनी दिखने लगती है।
ताजा केस हो या पुरानी फाइलें — हर जगह बच्चों की हत्या के पीछे एक अंधी कामना दिखती है।
कहीं प्रेमी के लिए मां ने अपने मासूम को मार डाला, कहीं बाप ने नई शादी की राह में बच्चे को काट फेंका।
पिछले दशक का खौफनाक सच
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े सीने पर पत्थर की तरह गिरते हैं।
पिछले 10 सालों में करीब 12 हजार बच्चों की हत्या उनके अपने घरों में हुई।
इनमें से कई केसों में हत्यारे वो थे जिन पर बच्चे सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं — उनके माता-पिता।
ये आंकड़े बस नंबर नहीं, रिश्तों की कब्र पर खड़े पत्थर हैं।

गांव से महानगर तक — कोई अछूता नहीं
चाहे मप्र के कस्बे हों या यूपी के शहर, महाराष्ट्र के मॉल हों या राजस्थान के खेत, हर जगह कोई न कोई मासूम हवस या जमीन-जायदाद की बलि चढ़ता दिखा।
गांवों में विवाद अक्सर खेत की मेड़ पर खून तक जा पहुंचते हैं।
शहरों में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और लिव-इन रिलेशन के चक्कर में बच्चे मार दिए जाते हैं।
पुलिस फाइलों की तहरीरें
पुलिस केस डायरीज़ बताती हैं कि ये कत्ल कोई आवेश में उठाया कदम नहीं होते।
बहुत बार हत्याएं सुनियोजित होती हैं।
कोई मां अपने प्रेमी से बच्चे को जहर दिलवाती है, कोई बाप तकिए से मुंह दबा देता है।
और फिर शव के पास बैठकर विलाप भी करता है ताकि शक न आए।
कभी-कभी तो बाद में यही आरोपी लाश के लिए इंसाफ की मांग करते भी दिखते हैं।
हवस के लिए बच्चों का कत्ल — क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यही है — अगर अपने ही बच्चे को मार डालना था तो उसे जन्म ही क्यों दिया?
क्यों एक मासूम की हंसी से ज्यादा किसी की जायदाद प्यारी लगी?
क्यों किसी की गोद में बैठने की जगह मौत की चिता मिली?
क्या हमारा समाज अब इतना हृदयहीन हो चला है कि अपनी हवस या संपत्ति के लिए मासूम जिंदगियों की आहुति देना सामान्य बात हो गई?
कानून का डर भी नहीं बचा?
भारतीय कानून में हत्या के लिए उम्रकैद या फांसी तक का प्रावधान है।
लेकिन आंकड़े बताते हैं कि कानून का डर कम और हवस की भूख ज्यादा है।
क्या इस पर हमें दोबारा विचार नहीं करना चाहिए कि सिर्फ सजा से कुछ नहीं होगा, हमें सामाजिक शर्म भी ज़रूरी है?
रिश्तों का भरोसा अब सवालों के घेरे में
हर ऐसी घटना के बाद मां-बाप जैसे शब्दों का मतलब बदलने लगता है।
क्या अब बच्चे भी डरें कि उनके अपने ही कहीं उन्हें मिटा न दें?
क्या भरोसे की वो डोर इतनी कमजोर है कि हवस की आंधी में टूटकर बिखर जाए?
गद्दारी करबे: रिश्तों की असली गद्दारी
गद्दारी करबे का मकसद यही है — उस सड़ांध को सामने लाना जो रिश्तों की खूबसूरत तस्वीर में छुपी है।
जब अपने ही हवस के लिए बच्चों का गला काट दें, तो ये सिर्फ जुर्म नहीं, इंसानियत की कब्र पर गद्दारी का पत्थर है।
भारत पल्स न्यूज की अपील
भारत पल्स न्यूज अपने पाठकों से पूछना चाहता है —
क्या हवस, संपत्ति और वासना इतनी बड़ी हो गई है कि उसके लिए बच्चों का कत्ल भी जायज लगे?
क्यों नहीं हम ऐसे लोगों का बहिष्कार करते जो रिश्तों को लहूलुहान करते हैं?
ये सवाल सिर्फ पुलिस या अदालत से नहीं, समाज और हम सब से भी हैं।
क्योंकि आज किसी और के घर में हो रहा है, कल हमारे दरवाजे पर भी दस्तक दे सकता है।
समाप्ति में:
ऐसी घटनाएं हमें चेतावनी दे रही हैं कि हवस, लालच और स्वार्थ जब रिश्तों की दीवार में घुस जाए, तब वहां सिर्फ कत्ल होते हैं।
समाज को अब जागना होगा, वरना हवस के लिए बच्चों का कत्ल भी एक दिन आम खबर बन जाएगी।
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