आज पूरे भारत में नरक चातुर्दशी का पर्व मनाया जा रहा है। यह त्यौहार दिवाली से ठीक एक दिन पहले आता है और इसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। घरों में रोशनी और उत्साह का माहौल देखने को मिलता है। लेकिन इस दिन की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व को जानना उतना ही जरूरी है जितना दीपक जलाना। आइए विस्तार से समझते हैं कि नरक चातुर्दशी का असली महत्व क्या है और इसके पीछे कौन-कौन सी परंपराएं जुड़ी हैं।
नरक चातुर्दशी का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
इस दिन की कथा प्राचीन समय से चली आ रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इस दिन राक्षस नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने असंख्य निर्दोष लोगों को प्रताड़ित किया और उनका राज्य आतंक में रखा। भगवान कृष्ण ने उसके अत्याचार को समाप्त करते हुए उसे हराया। तभी से इस दिन को अच्छाई पर बुराई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
धार्मिक दृष्टि से नरक चातुर्दशी आत्म शुद्धि का दिन माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसे ‘उषा स्नान’ या ‘नरकस्नान’ भी कहा जाता है। घर के कोने-कॉने की सफाई करना, दीयों से घर को जगमगाना और पूजा करना इस दिन की प्रमुख परंपराएं हैं।
धर्म और परंपरा के अनुसार, इस दिन लोग विशेष मिठाइयां और पकवान बनाते हैं। अनेक जगहों पर नरक चतुर्दशी पर हल्दी और तेल से स्नान करने की परंपरा भी है। इसे ‘तिलक और स्नान’ की प्रथा के रूप में माना जाता है। यह मान्यता है कि इस दिन किया गया स्नान और पूजा शत्रु, दुर्भाग्य और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाती है।
छोटी दिवाली का यह पर्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है। इसे सामाजिक और पारिवारिक आयोजन के रूप में भी मनाया जाता है। बच्चे और बड़े दीयों और रंग-बिरंगी रोशनी से घर सजाते हैं। इसके साथ ही दिये और मोमबत्तियां जलाकर घर को अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करने की परंपरा है।
भारत पल्स न्यूज के अनुसार, इस वर्ष नरक चातुर्दशी 2025 में दिवाली से एक दिन पहले यानी कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस दिन का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। घरों में भाई-बहन, माता-पिता और बच्चों के बीच सामूहिक भागीदारी और सहयोग का भाव जागृत होता है।
इस दिन का एक और पहलू है आर्थिक और व्यावसायिक दृष्टिकोण। बाजारों में छोटी दिवाली से पहले विशेष छूट और ऑफर आते हैं। लोग इस अवसर पर खरीदारी करते हैं और त्योहार की तैयारी में जुट जाते हैं। हालांकि, धार्मिक दृष्टि से इसका मूल उद्देश्य आत्म शुद्धि और बुराई पर अच्छाई की विजय है।
कई क्षेत्रों में धर्म और परंपरा के अनुसार, इस दिन विशेष पूजा व मंत्रोच्चारण का आयोजन होता है। देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण की पूजा करके लोग अपने घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं। पूजा में चावल, हल्दी, तिल और मिठाइयां अर्पित की जाती हैं। यह दिन सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का भी प्रतीक है।
छोटी दिवाली को लेकर कुछ लोक विश्वास भी हैं। जैसे कि इस दिन हल्दी-तेल से स्नान करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। इसे धन की वृद्धि और बुराई से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। घर की सफाई करना और दीयों से सजाना भी इस दिन की अनिवार्य परंपरा है। इस प्रकार, नरक चातुर्दशी न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने का दिन भी है।
इस पर्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह अगले दिन आने वाली दिवाली की तैयारी का संदेश देता है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक हर कोई अपने घर और मन को रोशनी और खुशी से भरता है। पौराणिक कथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों और पारिवारिक परंपराओं का मिश्रण इस दिन को खास बनाता है।
समापन में कहा जा सकता है कि आज का दिन सिर्फ दीपक जलाने या मिठाई खाने तक सीमित नहीं है। छोटी दिवाली हमें अच्छाई पर बुराई की विजय, आत्म शुद्धि और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का संदेश देती है। इसे मनाने की परंपरा समय के साथ बदलती रही है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य यथावत् है।
भारत पल्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की इस छोटी दिवाली पर लोग अपने घरों को सजाने, पूजा करने और बुराई पर अच्छाई की जीत को मनाने के लिए तैयार हैं। इस दिन को समझदारी और धार्मिक परंपरा के साथ मनाना ही सही मायनों में शुभता और समृद्धि लेकर आता है।
निष्कर्ष:
नरक चातुर्दशी का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक मेलजोल का प्रतीक भी है। इस दिन का मुख्य संदेश यही है कि अच्छाई की शक्ति हमेशा बुराई पर भारी रहती है। पूजा, स्नान और घर की सफाई जैसी परंपराओं के माध्यम से मन और घर दोनों को शुद्ध किया जाता है। 2025 की छोटी दिवाली में इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है, और इसे सही रीति-रिवाज और समझदारी से मनाना आवश्यक है।
More Stories
दिवाली की तिथि को लेकर क्यों मचा है कन्फ्यूजन !
शरद पूर्णिमा आज: जाने क्या है इसका खास महत्व
आख़िर रक्षा बंधन की शुरुआत कैसे हुई, क्या है इसका इतिहास?