Bharat Puls News

सच करीब से दिखता है

आख़िर रक्षा बंधन की शुरुआत कैसे हुई, क्या है इसका इतिहास?

रक्षा बंधन

हर साल सावन की पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला रक्षा बंधन सिर्फ एक त्योहार नहीं, एक भावना है। यह पर्व भाई बहन के रिश्ते का उत्सव है—एक ऐसा रिश्ता जो न खून का मोहताज है, न कोई शर्तों का। लेकिन सवाल अब भी कायम है: इस परंपरा की जड़ें कहाँ हैं? इसकी शुरुआत कैसे हुई?

इतिहास, पौराणिकता और संस्कृति के पन्नों में इसके जवाब दर्ज हैं।

पौराणिक कथाओं में रक्षा बंधन

रक्षा बंधन का ज़िक्र हमें सबसे पहले महाभारत में मिलता है। जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया, तो उनकी उंगली कट गई। पास खड़ी द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर तुरंत उनकी उंगली पर बाँध दी। इस छोटे से क़दम ने एक वादा जन्म दिया—कृष्ण ने जीवनभर द्रौपदी की रक्षा का संकल्प लिया।

इससे भी पहले, विष्णु पुराण में एक कथा आती है: असुरों और देवों के युद्ध के समय इंद्र की पत्नी शचि ने इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बाँधा था। उस दिन सावन की पूर्णिमा थी। और तभी से रक्षासूत्र बाँधने की परंपरा शुरू हुई—सिर्फ भाई बहन के बीच नहीं, बल्कि हर उस रिश्ते में जहाँ ‘रक्षा’ की भावना हो।

इतिहास की गवाही

इतिहास में यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं रही। यह राजनीतिक रणनीतियों का हिस्सा भी बनी। रानी कर्णावती और मुग़ल सम्राट हुमायूँ की कहानी इसका प्रमुख उदाहरण है। जब गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर हमला किया, तो विधवा रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजी। उसने इस बंधन को सम्मान दिया और कर्णावती की मदद को निकल पड़ा।

हालाँकि वह युद्ध हुमायूँ के वहाँ पहुँचने से पहले ही समाप्त हो चुका था, लेकिन यह घटना रक्षा बंधन को एक अलग सामाजिक और राजनैतिक संदर्भ देती है।

भारत की विविधता में एकता का पर्व

रक्षा बंधन उत्तर भारत में जितना भावनात्मक है, दक्षिण भारत में उतना ही धार्मिक। महाराष्ट्र में इसे ‘नारळी पूर्णिमा’ कहा जाता है, जहाँ समुद्री समुदाय समुद्र देवता को नारियल चढ़ाकर आशीर्वाद लेते हैं। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में यह ‘झूलन यात्रा’ के साथ जुड़ जाता है, जिसमें राधा-कृष्ण की झूले पर पूजा होती है।

हर प्रांत इसे अपनी परंपराओं के अनुसार मानता है, पर भावना एक ही है—रक्षा, प्रेम और विश्वास।

बदलते वक्त में रक्षा बंधन का नया रूप

अब यह पर्व केवल खून के रिश्ते तक सीमित नहीं। कई महिलाएं सैनिकों, डॉक्टर्स और पुलिसकर्मियों को राखी बाँधती हैं, ताकि उनके बलिदान को सम्मान मिल सके। पर्यावरण कार्यकर्ता पेड़ों को राखी बाँधकर संरक्षण का संदेश देते हैं।

भारत पल्स न्यूज की रिपोर्टों में सामने आया है कि आजकल डिजिटल राखियों का चलन भी बढ़ गया है। वीडियो कॉल्स, ई-राखी और ऑनलाइन गिफ्ट्स ने दूरी को खत्म कर दिया है। पर भावनाएं अब भी वैसी ही गहरी हैं।

राखी: धागा नहीं, एक संकल्प

राखी बाँधते वक़्त बहन बस एक बात कहती है—”तू मेरा है, और मैं तेरे साथ हूँ।” और भाई बिना कुछ कहे यह वादा करता है कि जब भी ज़रूरत पड़ेगी, वह उसकी रक्षा करेगा।

यह धागा साधारण नहीं। इसमें बहन की चिंता, प्यार, दुआ और एक उम्मीद बंधी होती है। यह एक भरोसे का धागा है—जो सिर्फ भाई बहन के बीच नहीं, समाज के हर उस रिश्ते में बंध सकता है जहाँ एक दूसरे की परवाह है।

निष्कर्ष

रक्षा बंधन महज एक रस्म नहीं, एक विचार है। यह उस भारतीय संस्कृति की पहचान है जहाँ रिश्ते सिर्फ खून से नहीं, भावनाओं से बनते हैं।

यह पर्व हमें बार-बार याद दिलाता है कि जब एक बहन बिना शर्त अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है, तो वह सिर्फ उसका साथ नहीं मांगती—वह उसे उसकी ज़िम्मेदारी भी सौंपती है। और एक भाई, उस धागे में बंधकर सिर्फ उसका रक्षक नहीं बनता, बल्कि उसका हमसफ़र भी बनता है।

भारत पल्स न्यूज की ओर से देशभर के सभी भाई बहन को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ। रिश्तों का यह धागा हर साल यूँ ही मज़बूत होता रहे।