दोगली कांग्रेस” के काले कारनामे: आज़ादी से अब तक का विस्तृत विश्लेषण
आज बात काँग्रेस पार्टी के दोगलेपन की दोस्तों, गद्दारी जब चुपचाप होती है, तब उसका शोर सबसे खतरनाक होता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस किस्से के बारे में, जिसे शायद इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया था – लेकिन भारत पल्स न्यूज़ उसे आपके सामने लाने जा रहा है । इसी क्रम मे पेश है आज का पहला एपिसोड नेता प्रतिपक्ष के रूप मे राहुल गांधी जब अपने ही देश के खिलाफ गंदी राजनीति का खेल रहे हैं तो अब समय है कांग्रेस पार्टी के इतिहास को जानने का। ये एक ऐसा विस्तृत विश्लेषण हैं जिसमे आपको खुद समझ आ जाएगा की कांग्रेस पार्टी का देश विरोधी इतिहास कितना पुराना रहा है।
सत्ता की भूख जब राष्ट्रधर्म से बड़ी हो जाए
आजादी के बाद जिन हाथों में भारत की बागडोर दी गई, उन्होंने क्या राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा? या फिर सत्ता और परिवारवाद को? कांग्रेस, जिसने आजादी की लड़ाई में भूमिका निभाई, वही पार्टी आगे चलकर कैसे राष्ट्र की आत्मा को खो बैठी — यही सच जानने के लिए “गद्दारी करवे” की ये विशेष श्रृंखला। आज पेश है – “दोगली कांग्रेस” के वो काले पन्ने, जिन्हें आज भी पाठ्यक्रमों में नहीं पढ़ाया जाता।
कांग्रेस के इस दोगलेपन को समझने के लिए हम इस श्रृंखला में “कांग्रेस” के काले पन्नों को भी उजागर करेंगे।
1. विभाजन का राजनैतिक सौदा: सत्ता के लिए भारत को काटा गया
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने आज़ादी की जल्दबाजी में 1947 में देश का विभाजन स्वीकार कर लिया। लाखों निर्दोषों की जानें गईं, पर तत्कालीन नेताओं को सिर्फ सत्ता चाहिए थी। पाकिस्तान की मांग को जिस ढंग से स्वीकार किया गया, उससे साफ हुआ कि यह निर्णय राष्ट्रीय हित में नहीं, बल्कि कांग्रेस की सत्ता-लिप्सा के तहत लिया गया।
टीम भारत पल्स न्यूज़ पूछती है — क्या भारत की आत्मा को दो टुकड़ों में बांटना गद्दारी नहीं थी?
2. कश्मीर पर कायरता: धारा 370, पाकिस्तान प्रेम और सेना की बेड़ियां
कश्मीर का भारत में विलय हो चुका था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने अनुच्छेद 370 जैसे अस्थायी प्रावधान को “स्थायी हथियार” बना डाला। नतीजा? अलगाववाद, आतंकवाद और पाकिस्तान का सीधा हस्तक्षेप। पंडित नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र का रुख करके भारत के आंतरिक मामले को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।
सेना जीत रही थी, नेहरू ने युद्ध रोक दिया — क्यों? क्या यह आदेश राष्ट्रहित में था या अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए आत्मसमर्पण?
3. चीन युद्ध 1962 – ‘हिंदी-चीनी भाई भाई’ का विश्वासघात
जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया, कांग्रेस के नेतृत्व ने न तो सेना को पर्याप्त संसाधन दिए, न समय। खुद नेहरू ने “हमें चीन से खतरा नहीं” कहा था, पर परिणाम? देश की करारी हार। आज भी हेंडरसन ब्रूक्स रिपोर्ट पूरी तरह सार्वजनिक नहीं की गई — क्योंकि यह कांग्रेस की ऐतिहासिक विफलताओं को उजागर करती है।
जब नेतृत्व गूंगा बन जाए, तो सेना भी लाचार हो जाती है।
4. आपातकाल 1975 – लोकतंत्र का गला घोंटा गया
जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध ठहराया, तो उन्होंने लोकतंत्र को ही स्थगित कर दिया। प्रेस, न्यायपालिका, विपक्ष — सब कुछ कुचल दिया गया। संजय गांधी के कहने पर नसबंदी अभियान चलाया गया — लाखों गरीबों की जबरन नसबंदी की गई।
क्या यह शासन था या तानाशाही? क्या ये गांधी परिवार राष्ट्र का सेवक था या शासक?
5. ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 का दंगा – अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध
अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई से लाखों सिख आहत हुए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ, कांग्रेस नेताओं की अगुवाई में। एक नेता ने कहा – “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है”।
क्या यह बयान संवेदनशीलता था या खुलेआम गद्दारी?
6. बोफोर्स घोटाला – सेना की सुरक्षा पर दलाली
जब भारत को आधुनिक तोपों की ज़रूरत थी, तब कांग्रेस सरकार ने स्वीडन की बोफोर्स कंपनी से रिश्वत लेकर सौदा किया। इससे न केवल भारत की सुरक्षा प्रभावित हुई, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि भी धूमिल हुई।
राष्ट्रीय सुरक्षा को भी कांग्रेस ने दलाली में बेच दिया।
7. आर्थिक घोटालों की भरमार – सत्ता का मतलब पैसा?
- 2G घोटाला: लाखों करोड़ का नुकसान
- कॉमनवेल्थ घोटाला: देश की इज्ज़त के साथ खिलवाड़
- कोल ब्लॉक घोटाला: कोयला खा गई सरकार
- नेशनल हेराल्ड केस: गांधी परिवार द्वारा ट्रस्ट की सम्पत्ति का निजी इस्तेमाल
कांग्रेस ने राष्ट्र को लूटा और उसे “विकास” का नाम दिया।
8. ‘हिंदू आतंक’ का निर्माण – बहुसंख्यकों को कटघरे में खड़ा करना
कांग्रेस शासन में पहली बार ‘हिंदू आतंक’ जैसे शब्द मीडिया में फैलाए गए। मालेगांव विस्फोट में झूठे आरोप लगाकर संतों और सेना के अधिकारियों को जेल में डाला गया। बाद में अदालतों ने सब बरी कर दिया, लेकिन कांग्रेस ने जानबूझकर बहुसंख्यकों को बदनाम किया।
क्या ये सोच “धर्मनिरपेक्षता” थी या “वोट बैंक की भूख”?
9. आतंकवादियों से सहानुभूति, सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल
जब उरी और पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक हुई, कांग्रेस नेताओं ने सबूत मांगे। ये वही नेता थे जो अफजल गुरु और याकूब मेमन जैसे आतंकियों के लिए माफी की पैरवी करते रहे।
यह राष्ट्रीय सुरक्षा का अपमान नहीं तो और क्या?
10. राष्ट्रविरोधी NGOs और विदेशी एजेंडा – ‘Breaking India’ नेटवर्क का हिस्सा?
कांग्रेस के शासनकाल में सैकड़ों NGO विदेशी फंडिंग से भारत की नीतियों के खिलाफ काम करते रहे। इन्हें रोका नहीं गया क्योंकि इनमें से कई कांग्रेस नेताओं के संरक्षण में काम कर रहे थे।
क्या यह राष्ट्रहित था या राष्ट्र को भीतर से खोखला करने की साज़िश?
11. राहुल गांधी का विदेशी मंचों पर भारत को बदनाम करना
आज कांग्रेस के नेता बार-बार विदेशी मीडिया और मंचों पर कहते हैं कि भारत में “लोकतंत्र खतरे में है”, “अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं”। यह वही भाषा है जो पाकिस्तान और दुश्मन देश इस्तेमाल करते हैं।
क्या यह विपक्ष की भूमिका है या अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की छवि बिगाड़ना?
निष्कर्ष:
“दोगली कांग्रेस” सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि वह विचारधारा है जो सत्ता के लिए देश को भी बेचने से नहीं हिचकिचाती। आज़ादी के बाद से अब तक अगर कोई संगठन राष्ट्रहित से सबसे ज्यादा भटका है, तो वो कांग्रेस है।
टीम भारत पल्स न्यूज़ कहती है:
“देश विरोधी सोच जब सत्ता में बैठती है, तब इतिहास खुद को शर्मिंदा महसूस करता है। अब वक़्त है – सच को उजागर करने का।”
क्या आप अगली रिपोर्ट के लिए तैयार हैं?
“गद्दारी करवे” की अगली कड़ी में सामने लाएंगे “शहरी नक्सलियों”, वामपंथी सोच और उन साजिशों को जो देश को अंदर से तोड़ने में लगी हैं।