संपादकीय नीति
संपादकीय नीति – भारत पल्स न्यूज
“अरे भैया, आजकल तो हर वेबसाइट पर न्यूज़ का अंबार लगा है… पर सच्ची खबर कहाँ है?”
यह सवाल आपने भी कभी न कभी अपने मन में उठाया होगा।
मैं भी यही सोचता था — जब तक खुद पत्रकारिता से जुड़ने का मौका नहीं मिला। और तब जाकर समझ में आया कि असली फर्क संपादकीय नीति से पड़ता है।
आज मैं उसी अनुभव को आपसे साझा कर रहा हूँ, ताकि आप समझ सकें कि एक न्यूज़ पोर्टल की संपादकीय नीति क्यों ज़रूरी होती है — और कैसे यह तय करती है कि आपके सामने जो खबर आ रही है, वह भरोसे के लायक है या नहीं।
संपादकीय नीति आखिर है क्या?
सीधी भाषा में कहें, तो संपादकीय नीति वो दिशानिर्देश होते हैं जिनके तहत कोई भी समाचार संस्था काम करती है। इसमें यह तय होता है कि:
- क्या छापना है और क्या नहीं
- खबरें कैसे लिखी जाएंगी
- तथ्यों की जांच कैसे होगी
- किन स्रोतों को माना जाएगा
- और सबसे अहम – पत्रकारिता के उसूलों से कोई समझौता नहीं होगा
यह कुछ ऐसा है जैसे किसी डॉक्टर की शपथ, या वकील का आचार संहिता।
मेरे अनुभव में क्यों है यह ज़रूरी?
जब मैंने भारत पल्स न्यूज़ की शुरुआत की, तो सबसे पहले इसी पर काम किया — एक स्पष्ट, ईमानदार और ज़मीन से जुड़ी संपादकीय नीति तैयार करना।
क्यों?
क्योंकि आज के दौर में “तेज़” बनने की होड़ में बहुत से पोर्टल “सच” को पीछे छोड़ देते हैं। लेकिन मेरी सोच साफ थी — अगर हम सच दिखाएंगे, तो भले धीमे बढ़ेंगे, लेकिन भरोसे के साथ बढ़ेंगे।
एक अच्छी संपादकीय नीति में क्या-क्या होना चाहिए?
यहाँ कुछ बुनियादी चीज़ें हैं जो मैंने अपने अनुभव से सीखी हैं:
1. सच्चाई सबसे ऊपर
कोई खबर वायरल है? बहुत बढ़िया।
लेकिन क्या वह सच भी है? यही ज़्यादा ज़रूरी है।
हम हर खबर को छापने से पहले उसे कम-से-कम दो भरोसेमंद स्रोतों से क्रॉस-चेक करते हैं। कई बार, किसी छोटी सी गलती से लोगों की ज़िंदगियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
2. निष्पक्षता का वादा
राजनीति, धर्म, जाति या भाषा — किसी का भी पक्ष लेना हमारी नीति नहीं है। पत्रकारिता का काम सवाल पूछना है, किसी का प्रचार करना नहीं।
3. गलती मानी, तो मानी
इंसान हैं, गलती हो सकती है। लेकिन उस पर पर्दा डालना, ये पत्रकारिता नहीं होती। हमारी नीति कहती है —
“अगर गलती हो, तो खुलकर स्वीकार करो और सुधारो।”
4. पारदर्शिता में ही विश्वास है
हर रिपोर्ट में स्रोत का ज़िक्र ज़रूरी है। ताकि आप खुद तय कर सकें कि आप जो पढ़ रहे हैं, वह कितना सही है।
चलिए एक उदाहरण से समझते हैं
मान लीजिए, हमें खबर मिलती है कि किसी गांव में सरकारी राशन नहीं बंट रहा।
अब:
- हम पहले उस गांव के किसी स्थानीय व्यक्ति से बात करेंगे।
- उसके बाद संबंधित अधिकारी से पक्ष लेंगे।
- फिर गांव जाकर तस्वीरें या वीडियो जुटाएंगे।
- और तभी जाकर खबर प्रकाशित होगी — पूरी सच्चाई के साथ।
यही है संपादकीय नीति की असली परीक्षा।
पाठकों की भागीदारी भी ज़रूरी है
भारत पल्स न्यूज़ में हमने एक पहल शुरू की — रीडर इज़ रिपोर्टर।
इसका मकसद है आम लोगों को भी खबरों की दुनिया से जोड़ना, ताकि कोई भी घटना बिना दबाव या सेंसरशिप के सामने आ सके।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो आया, उसे छाप दिया। हर रिपोर्ट को हमारी संपादकीय टीम उसी कड़े मापदंड से जांचती है, जैसा किसी रिपोर्टर की खबर के साथ होता है।
संपादकीय नीति बनाती है विश्वास
आज इंटरनेट पर हजारों न्यूज साइट हैं। पर पाठक सिर्फ उन्हीं पर भरोसा करता है:
- जो साफ नीयत से काम करें
- जिनकी नीति लिखित और सार्वजनिक हो
- जो खबरें सोच समझकर और ज़िम्मेदारी से पेश करें
अगर आप कोई न्यूज पोर्टल शुरू कर रहे हैं या किसी पर भरोसा करना चाहते हैं, तो सबसे पहले उसकी संपादकीय नीति पढ़ें। इससे आपको तुरंत समझ आ जाएगा कि वह पोर्टल कैसा है।
निष्कर्ष: पत्रकारिता की रीढ़ है संपादकीय नीति
मेरे लिए संपादकीय नीति सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक वादा है — पाठकों से, समाज से, और खुद से।
अगर हम चाहते हैं कि समाज में सही जानकारी पहुंचे, तो संपादकीय नीति का पालन जरूरी है — हर हाल में, हर खबर में।
क्योंकि पत्रकारिता सिर्फ खबर देने का काम नहीं है, जिम्मेदारी निभाने का नाम है।