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एक ही दिन शिव और विष्णु की भक्ति: जब कामिका एकादशी और सावन सोमवार साथ आए

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श्रावण मास का दूसरा सोमवार और कामिका एकादशी—जब ये दो तिथियां एक साथ आएं, तो वह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं रहता। वो बन जाता है ध्यान, भक्ति और आत्मचेतना का एक दुर्लभ संगम।

और यही हो रहा है इस बार।

शिव और विष्णु, दो अलग मार्ग, दो देवता। लेकिन दोनों का मकसद एक ही है—मोक्ष और मन की शांति। और जब दोनों की पूजा एक ही दिन हो सके, तो ऐसा लगता है जैसे एक छोटी-सी खिड़की खुली हो—जहाँ भीतर की उलझनें बाहर बहने लगें।


ये दिन खास क्यों है?

चलो, बात को सीधे समझते हैं।

कामिका एकादशी—एकादशी यानी वह दिन जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास, पूजा और जाप करने से पुराने कर्मों का बोझ हल्का होता है। कहते हैं, भगवान विष्णु इस दिन विशेष रूप से भक्तों की बात सुनते हैं।

सावन सोमवार—श्रावण मास के हर सोमवार को शिव को जल अर्पित करने की परंपरा है। ये सिर्फ पूजा नहीं होती, ये वो दिन होता है जब लाखों लोग सिर्फ एक लक्ष्य के साथ उठते हैं—भोलेनाथ की कृपा।

इस बार ये दोनों दिन एक ही तारीख को पड़ रहे हैं। यानी व्रत और पूजन से मिलने वाली ऊर्जा दोहरी नहीं, कई गुना हो सकती है।


धार्मिक संदर्भ, लेकिन जमीन से जुड़ी सोच

अब अगर पौराणिक बात करें, तो गरुड़ पुराण में कहा गया है कि कामिका एकादशी का व्रत मोक्षदायक है। एक कहानी है जिसमें एक क्रूर और हिंसक व्यक्ति ने भी, सिर्फ एक बार अनजाने में यह व्रत रखा और उसके जीवन की दिशा ही बदल गई।

सावन सोमवार के बारे में तो सब जानते हैं—शिवलिंग पर जल चढ़ाना, बेलपत्र चढ़ाना, रुद्राभिषेक करना। लेकिन बात सिर्फ परंपरा की नहीं है। ये सब मन के साफ होने का ज़रिया है।

शिव और विष्णु—एक जीवन का पालन करता है, दूसरा संहार करता है। लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही है—जीवन को सही दिशा देना।


देशभर में आस्था की हलचल

भारत पल्स न्यूज के ग्राउंड रिपोर्टर्स ने बताया कि देश के बड़े शिव और विष्णु मंदिरों में ज़बरदस्त तैयारी है:

  • काशी विश्वनाथ, महाकाल, दक्षेश्वर, और झंडेवाला मंदिर जैसे जगहों पर भक्तों की लंबी कतारें हैं।
  • उत्तर भारत में सुबह से रुद्राभिषेक, विष्णु सहस्त्रनाम, और विशेष सत्संग हो रहे हैं।
  • दक्षिण भारत के मंदिरों में तुलसी-दल से पूजा, शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप, और उपवासियों के लिए विशेष प्रसाद का आयोजन किया जा रहा है।

लोग सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर रहे हैं, व्रत का संकल्प ले रहे हैं, और दिनभर संयम के साथ पूजा कर रहे हैं।


सिर्फ व्रत नहीं, अपने आप से जुड़ने का समय

यह दिन उन लोगों के लिए भी मायने रखता है जो खुद को सुधारना चाहते हैं, कुछ वक्त के लिए भागदौड़ से हटकर भीतर झांकना चाहते हैं।

  • जो लोग रोज़ भाग रहे हैं, यह दिन थोड़ा रुकने का मौका देता है।
  • जो तनाव में हैं, यह दिन उन्हें ठहराव दे सकता है।
  • और जो लोग खुद से कटे हुए हैं, ये दिन फिर से खुद से मिलने का रास्ता है।

व्रत रखने से शरीर हल्का होता है। पूजा से मन केंद्रित होता है। और जब दोनों साथ हों, तो आत्मा को साफ़ होने का एक सच्चा मौका मिलता है।


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आस्था और टेक्नोलॉजी का नया मेल

अब बात आज की दुनिया की करें, तो पूजा के तरीके भी बदले हैं। आज लोग मोबाइल से लाइव दर्शन देख रहे हैं, व्हाट्सऐप पर मंत्र सुन रहे हैं, और ऑनलाइन व्रत नियम फॉलो कर रहे हैं।

पर मतलब वही है—कनेक्शन।
शिव से भी, विष्णु से भी, और सबसे पहले खुद से।

भारत पल्स न्यूज को भी यह बात समझ में आई है, और इसलिए हम ऐसे खास मौकों को सिर्फ खबर की तरह नहीं, संवेदना की तरह पेश करते हैं।


क्या करें इस दिन? एक सरल मार्गदर्शिका

अगर आप इस दिन कुछ करना चाहते हैं, तो कोई जटिल अनुष्ठान की ज़रूरत नहीं। सरल तरीके से शुरू करें:

  1. सुबह जल्दी उठें, स्नान करके शांत मन से संकल्प लें।
  2. विष्णुजी को तुलसी, पंचामृत और दीप अर्पित करें।
  3. शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और भस्म चढ़ाएं।
  4. ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें।
  5. पूरे दिन शांत और संयमित रहें—यही असली व्रत है।

निष्कर्ष: सिर्फ तारीख नहीं, चेतना का दिन है ये

कामिका एकादशी और सावन सोमवार का ये संयोग कोई आम दिन नहीं है। ये दिन हमें एक ब्रेक देता है उस भीड़ से, जो बाहर है और भीतर भी।

यह वो समय है जब व्यक्ति धर्म की भाषा में नहीं, संवेदनाओं की भाषा में खुद से बात कर सकता है।

भारत पल्स न्यूज मानता है कि धर्म तब तक ज़िंदा है, जब तक लोग उसमें इंसानियत और आत्मशुद्धि का रास्ता खोजते हैं। और यही मकसद है ऐसे लेखों का—आपको सिर्फ जानकारी देना नहीं, जोड़ना


भारत पल्स न्यूज | जहां आस्था को खबरों से नहीं, लोगों से जोड़ा जाता है।