
लखनऊ/जयपुर/पटना/रायपुर/भोपाल ।
भीषण गर्मी का कहर झेल रहे उत्तर भारत के कई राज्य इन दिनों बिजली संकट की गंभीर मार झेल रहे हैं। हालात ये हैं कि कई जिलों में 12 से 15 घंटे तक की बिजली कटौती की जा रही है। ऐसे में लोगों की दिनचर्या, उद्योगों का संचालन और बच्चों की पढ़ाई—सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है।
भारत पल्स न्यूज़ के सूत्रों के अनुसार, बिजली संकट का यह मुद्दा महज तकनीकी नहीं, बल्कि प्रशासनिक विफलताओं और राजनीतिक निर्णयों का भी परिणाम है। जैसा कि आप जानते हैं, गर्मी बढ़ते ही हर साल बिजली की मांग में तेज़ उछाल आता है। लेकिन इस बार मांग के मुकाबले आपूर्ति में भारी अंतर पैदा हो गया है।

उत्तर प्रदेश: ग्रामीण इलाकों में 15 घंटे तक की कटौती
उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों से मिल रही जानकारी के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ललितपुर, चित्रकूट, बांदा जैसे बुंदेलखंड के ज़िलों में तो स्थिति और भी खराब है।
ग्रामीण निवासी रामशरण यादव ने टीम भारत पल्स न्यूज़ को बताया, “रात भर बिजली नहीं आती। इन्वर्टर भी कब तक चलेगा? बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह चौपट हो गई है।”
वहीं, शहरी इलाकों में भी लो वोल्टेज की गंभीर समस्या है। व्यापारी वर्ग खासा परेशान है क्योंकि AC, फ्रीज, कंप्यूटर जैसे उपकरण बंद हो जाते हैं, जिससे व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।
राजस्थान: पावर प्लांट कोयले की कमी से बंद

राजस्थान में कई पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। कोटा थर्मल प्लांट के तीन में से दो यूनिट बंद पड़ी हैं। वहीं, सूत्रों के अनुसार, झाड़ोल और बांसवाड़ा जिलों में बिजली सप्लाई दिन में केवल 8 घंटे दी जा रही है।
राज्य सरकार ने केंद्र से अतिरिक्त कोयले की मांग की है, लेकिन अभी तक कोई बड़ा राहत पैकेज नहीं आया है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “गर्मी में 25% ज्यादा बिजली की खपत होती है, पर कोयले की सप्लाई उतनी नहीं मिल पा रही। इससे पावर जेनरेशन गड़बड़ा गया है।”
बिहार और छत्तीसगढ़: राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू
बिहार में बिजली संकट पर राजनीतिक तकरार तेज़ हो गई है। सत्ताधारी गठबंधन ने केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है जबकि विपक्षी दल राज्य सरकार की नीतियों को कोस रहे हैं।
पटना निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता नीलम वर्मा कहती हैं, “हर बार गर्मी आती है, हर बार यही हाल होता है। नेताओं को बस बयान देना आता है, समाधान देना नहीं।”
छत्तीसगढ़ में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। बिलासपुर और रायगढ़ ज़िलों से लगातार शिकायतें आ रही हैं कि बिजली की आंख मिचौली से जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
औद्योगिक क्षेत्र पर भी पड़ा असर
भारत पल्स न्यूज़ को मिली जानकारी के अनुसार, नोएडा, भिवाड़ी और रायपुर के औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली की कमी से उत्पादन प्रभावित हो रहा है। छोटे और मझोले उद्योगों के लिए डीज़ल जनरेटर का खर्च वहन करना मुश्किल होता जा रहा है।
एक उद्योगपति ने बताया, “अगर यही हाल रहा तो हमें अपने कर्मचारियों की संख्या कम करनी पड़ेगी। उत्पादन ठप हो गया है और ऑर्डर डिले हो रहे हैं।”
क्या है समाधान?
हमें यह समझना होगा कि बिजली संकट सिर्फ मौसम की मार नहीं, बल्कि दीर्घकालिक योजनाओं की कमी का नतीजा भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यों को अब सोलर और विंड एनर्जी जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की तरफ गंभीरता से देखना चाहिए।
इसके साथ ही बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) की आर्थिक हालत सुधारनी होगी। कई राज्यों में DISCOM घाटे में चल रहे हैं, जिससे वो समय पर बिजली खरीद नहीं पाते।
निष्कर्ष
जैसा कि आप जानते हैं, बिजली अब केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि जीवन की आवश्यकता बन चुकी है। ऐसे में हर साल गर्मी आते ही बिजली संकट की खबरें आना गंभीर चिंता का विषय है।
टीम भारत पल्स न्यूज़ का मानना है कि राज्य सरकारों को आपसी समन्वय और केंद्र के साथ तालमेल बिठाकर दीर्घकालिक समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
जनता को सिर्फ आश्वासन नहीं, व्यावहारिक राहत चाहिए। और यह तभी मुमकिन है जब राजनीति से ऊपर उठकर प्रशासनिक निर्णय लिए जाएं।
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