गद्दारी करवे

शहरी नक्सली नेटवर्क: प्रोफेसर के रूप में देश के दुश्मन?

गद्दारी करवे – एपिसोड 2

शहरी नक्सली नेटवर्क: प्रोफेसर की आड़ में देश के गद्दार?


“जब दुश्मन सीमा पार नहीं, विश्वविद्यालय के क्लासरूम में बैठा हो – तब लड़ाई सिर्फ बंदूकों से नहीं, विचारों से भी लड़ी जाती है।”

यह पंक्ति ‘भारत पल्स न्यूज’ की आज की विशेष रिपोर्ट का सार है। हम बात कर रहे हैं उन चेहरों की, जो दिखने में पढ़े-लिखे, संभ्रांत और समाजसेवी लगते हैं — लेकिन भीतर से यह वही ताकतें हैं जो भारत को भीतर से खोखला करने की योजना पर वर्षों से जुटे हैं।


शहरी नक्सली: नकाब के पीछे छिपे नक्सल समर्थक

जब “शहरी नक्सली” शब्द पहली बार सामने आया, तो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने कहा — “ये तो सरकार की गढ़ी गई कहानी है।” लेकिन जैसे-जैसे सबूत सामने आते गए, इनकी असलियत जनता के सामने उजागर होती गई।

इनकी पहचान क्या है?

  • ये समाजशास्त्र पढ़ाते हैं, लेकिन छात्रों में भारत विरोधी सोच भरते हैं।
  • ये अदालतों में वकालत करते हैं, लेकिन आतंकियों के मानवाधिकार की लड़ाई लड़ते हैं।
  • ये सोशल मीडिया पर “शांति और प्रेम” की बात करते हैं, लेकिन भारतीय सेना और सरकार को गाली देते हैं।

इनका एजेंडा साफ है — भारत की व्यवस्था, संस्कृति, सुरक्षा और अखंडता को “अभिव्यक्ति की आज़ादी” के नाम पर तोड़ना।


विश्वविद्यालय या विचारधारा की प्रयोगशाला?

आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि देश के कई नामी विश्वविद्यालय आज देशविरोधी विचारों का केंद्र बन चुके हैं। खासकर JNU, TISS, Jadavpur, JMI जैसे संस्थानों में:

  • खुलेआम भारत को तोड़ने की बातें होती हैं।
  • “अफजल हम शर्मिंदा हैं…” जैसे नारे लगते हैं।
  • आतंकियों को “शहीद” कहा जाता है।

प्रश्न ये नहीं कि यह सब हो रहा है, बल्कि प्रश्न यह है — क्या यह सब इतने वर्षों से हो रहा है और सरकारें खामोश थीं?


भीमा-कोरेगांव केस: शहरी नक्सलियों की पोल खुली

2018 में पुणे के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा महज एक घटना नहीं थी, यह एक सुनियोजित प्रयोग था। पुलिस जांच में जिन चेहरों का नाम सामने आया, वे सब पढ़े-लिखे, प्रतिष्ठित लगते थे:

  • सुधा भारद्वाज – वकील और सामाजिक कार्यकर्ता
  • गौतम नवलखा – पत्रकार
  • वरवरा राव – कवि
  • अर्नेस्टो फरेरा, रोना विल्सन, स्टेन स्वामी – और अन्य

इन पर आरोप थे कि ये:

  • माओवादी संगठन CPI (Maoist) से जुड़े हैं,
  • प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में शामिल थे,
  • और नक्सलियों को हथियार सप्लाई कराने की योजना में सक्रिय थे।

क्या यह सब कल्पना है? नहीं। पुलिस ने इनके लैपटॉप से हथियार खरीद, ट्रेनिंग कैंप और पैसे के लेन-देन के दस्तावेज़ बरामद किए।


नया मोर्चा: अंतरराष्ट्रीय लिंक वाले प्रोफेसर और पत्रकार

2025 के शुरू में नागपुर में गिरफ्तार हुआ रेजाज सिदीक नामक तथाकथित पत्रकार का केस देश की आंखें खोलने वाला है। यह शख्स:

  • विदेशी नंबरों और VPN के ज़रिए ISI और पाकिस्तान से संपर्क में था।
  • JKLF से जुड़ा था और भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों की गोपनीय जानकारी लीक कर रहा था
  • भारत के संवेदनशील इलाकों में माओवादी विचारधारा फैलाने के मिशन पर था

जांच में यह बात सामने आई कि उसने भारत के विश्वविद्यालयों में कई प्रोफेसरों से संपर्क साधा और युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की।


अदालतें और मीडिया: गद्दारी पर पर्दा या पर्दाफाश?

जब इन पर कार्रवाई होती है, तो मीडिया का एक बड़ा वर्ग कहता है – “यह लोकतंत्र की हत्या है।”

कई वकील कहते हैं – “इनके पास विचार की आज़ादी है।”

भारत पल्स न्यूज पूछता है:

  • क्या देश के खिलाफ हथियार उठाने वाले को “विचारक” कहा जाएगा?
  • क्या प्रधानमंत्री की हत्या की योजना बनाना “स्वतंत्र सोच” कहलाएगी?
  • क्या देश की सेना को बलात्कारी कहने वाले को विश्वविद्यालय में पढ़ाने दिया जाना चाहिए?

हम नहीं मानते। जनता भी नहीं मानेगी।


भारत की आंतरिक सुरक्षा पर हमला

इन तथाकथित शहरी नक्सलियों का नेटवर्क सिर्फ विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है:

  • कुछ NGOs इनका विदेशी फंडिंग के जरिए समर्थन करते हैं।
  • कुछ मानवाधिकार संगठन इनकी पैरवी करते हैं।
  • कुछ राजनीतिक दल इन्हें “विचारक” कहकर शरण देते हैं

इनकी पहुंच कोर्ट, मीडिया, सोशल मीडिया, शिक्षण संस्थान, और यहां तक कि सरकारी तंत्र में भी है।


भारत पल्स न्यूज़ की सीधी बात:

क्या यह गद्दारी नहीं कि आप भारतीय संविधान की शपथ लेकर माओवादियों को समर्थन दें?

क्या यह देशद्रोह नहीं कि आप कश्मीर से लेकर छत्तीसगढ़ तक देश की सुरक्षा को कमजोर करने की रणनीति बनाएं?

क्या ये खतरनाक नहीं कि भारत का भविष्य यानी छात्र आज उन्हीं लोगों से विचार सीख रहा है, जो भारत के टुकड़े करना चाहते हैं?


निष्कर्ष: अब चुप नहीं रह सकते

“गद्दारी करवे” का आज का एपिसोड केवल एक रिपोर्ट नहीं — यह चेतावनी है।
देश अब चुप नहीं रहेगा। जो देश के खिलाफ हैं, वो किताबी ज्ञान या विदेशी चंदे की आड़ में नहीं छुप पाएंगे।

भारत पल्स न्यूज स्पष्ट करता है:

“हम विचार की आज़ादी के साथ हैं, लेकिन गद्दारी के खिलाफ खड़े हैं।”

यह लड़ाई लंबी है, लेकिन सच्चाई के साथ खड़े रहना ही पत्रकारिता का धर्म है — और भारत पल्स न्यूज वही कर रहा है।

अगला एपिसोड फेक न्यूज़ माफिया: कैसे बिके हुए चैनल और पत्रकार देश को गुमराह कर रहे हैं?

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