जैसा कि आप जानते हैं, वैश्विक राजनीति में अमेरिका की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। लेकिन 15 मई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो कदम उठाया, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। ट्रंप ने अपने बहुचर्चित मध्य पूर्व दौरे के दौरान सीरिया पर लगे दशकों पुराने प्रतिबंधों को हटाने की घोषणा कर दी और इसके साथ ही सऊदी अरब के साथ $600 अरब के आर्थिक समझौते को भी सार्वजनिक किया।
हमें यह समझना होगा कि यह कदम सिर्फ एक आर्थिक सौदा नहीं है, बल्कि इसके ज़रिए ट्रंप प्रशासन मध्य पूर्व की नई रणनीति को सामने ला रहा है — जो ईरान के प्रभाव को कम करना, सीरिया को अंतरराष्ट्रीय मुख्यधारा में वापस लाना और सऊदी अरब के साथ संबंधों को पहले से कहीं अधिक मज़बूत करना है।
सीरिया से प्रतिबंध हटना क्यों अहम है?
सीरिया पर लंबे समय से अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंध लगे थे। 2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध और असद शासन पर मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोपों के चलते सीरिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ा था। लेकिन अब वहां एक नई सरकार है — राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ, जो पूर्व विद्रोही नेता थे, अब अमेरिका के निकट माने जाते हैं।
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप ने अल-शराआ के साथ गुप्त बैठक में भरोसा जताया कि यदि सीरिया ईरान के प्रभाव से दूरी बनाए रखता है और इज़राइल से संबंध सामान्य करता है, तो अमेरिका सीरिया को फिर से वैश्विक मंच पर स्वीकार कर सकता है।
सऊदी अरब से $600 अरब का निवेश समझौता
रियाद में हुई ऐतिहासिक बैठक के बाद ट्रंप ने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ एक बड़ा निवेश समझौता किया। यह समझौता ऊर्जा, रक्षा, तकनीक और स्वास्थ्य क्षेत्र में किया गया है। अमेरिका की 40 से अधिक मल्टीनेशनल कंपनियां इस समझौते में भागीदार हैं।
टीम भारत पल्स न्यूज़ को मिली जानकारी के अनुसार, इस समझौते से अमेरिका में लाखों नौकरियां पैदा होने की संभावना है, जबकि सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को भी इससे भारी गति मिलेगी, खासकर उसके “विजन 2030” रिफॉर्म्स को।
इज़राइल को क्यों है चिंता?
इस पूरे दौरे में सबसे अहम बात यह रही कि ट्रंप ने इज़राइल का दौरा नहीं किया। यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने मध्य पूर्व यात्रा में इज़राइल को नजरअंदाज किया है। इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अब तक इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं दी है, लेकिन इज़राइली मीडिया और राजनीतिक हलकों में गहरी चिंता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह संकेत है कि अमेरिका अब क्षेत्रीय राजनीति में संतुलन बना रहा है और सऊदी अरब तथा सीरिया जैसे पुराने प्रतिद्वंद्वियों को नई भूमिका में देखना चाहता है।
क्या बढ़ेगा ईरान पर दबाव?
ईरान के लिए यह पूरा घटनाक्रम चिंता का विषय है। एक ओर अमेरिका अब सीरिया और सऊदी के और करीब आ गया है, वहीं दूसरी ओर यह समझौता ईरान की क्षेत्रीय रणनीति को कमजोर करता है। ईरानी विदेश मंत्रालय ने इस समझौते को “प्रोपेगेंडा और अस्थायी गठजोड़” बताया है।
भारत पर क्या असर पड़ेगा?
भारत, जो ऊर्जा आयात के लिए खाड़ी देशों पर निर्भर है, इस घटनाक्रम को नज़दीक से देख रहा है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि “भारत हर क्षेत्रीय घटनाक्रम पर कड़ी नज़र रख रहा है और भारत के हितों की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे।”
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और सऊदी अरब के बीच यह समझौता भारत के लिए अवसर भी ला सकता है — विशेषकर इंफ्रास्ट्रक्चर, ऑयल सप्लाई और रक्षा साझेदारी के क्षेत्र में।
निष्कर्ष
जैसा कि टीम भारत पल्स न्यूज़ पहले ही रिपोर्ट कर चुकी है, यह सिर्फ एक राष्ट्रपति दौरा नहीं था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा मोड़ है। ट्रंप का यह साहसी कदम आने वाले महीनों में पूरी दुनिया की भू-राजनीतिक दिशा को प्रभावित कर सकता है।
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