
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का ज़िक्र किया है, मगर सवाल यही उठ रहा है — क्या मामला सिर्फ शरीर का है या सत्ता के केंद्र में कुछ बड़ा पक रहा है?
धनखड़ का इस्तीफा ऐसे वक्त आया है जब संसद का मानसून सत्र सिर पर है और देश एक के बाद एक राज्यों में चुनावी मोड में जा रहा है। ऐसे समय पर देश के दूसरे सबसे ऊँचे संवैधानिक पद से हटना, वो भी बिना कोई विस्तार दिए — आम बात नहीं है।
बिना शोर के बड़ा कदम
धनखड़ ने न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की, न कोई सार्वजनिक संदेश। बस एक चिट्ठी राष्ट्रपति को भेजी, और राष्ट्रपति भवन ने सूक्ष्म बयान जारी कर इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
ऐसे में पहला सवाल यही उठा —
क्या उपराष्ट्रपति जैसी जिम्मेदारी को अचानक छोड़ना वाकई सिर्फ निजी सेहत का मामला है?
या फिर पर्दे के पीछे ऐसा कुछ घटा है जिसे अभी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता?
धनखड़ कौन हैं और क्यों ये इस्तीफा मायने रखता है
जगदीप धनखड़ कोई साधारण नेता नहीं हैं। राजस्थान के झुंझुनू से निकलकर वे दिल्ली की राजनीति के ऊपरी गलियारों तक पहुंचे। वकालत, संसद, गवर्नर पद, और फिर उपराष्ट्रपति — उनका सफर टकरावों, बयानबाज़ियों और स्पष्ट रवैये से भरा रहा है।
उनकी सबसे चर्चित भूमिका रही पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के तौर पर, जहां उन्होंने ममता बनर्जी सरकार को एक पल चैन से नहीं बैठने दिया। भाजपा की ओर से उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने को भी उनकी आक्रामक शैली का इनाम माना गया था।
क्या भाजपा में कुछ खदबदा रहा है?
हाल के महीनों में धनखड़ की मौजूदगी संसद में कम होती गई। कोई खुला विरोध नहीं, कोई सार्वजनिक शिकायत नहीं — मगर उनका अंदाज़ धीरे-धीरे शांत होता गया।
इस्तीफा आते ही ये अटकलें तेज़ हो गईं कि क्या भाजपा नेतृत्व के साथ उनके रिश्तों में दरार आई थी? या फिर उन्हें नई जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जा रहा है, जैसे कि राजस्थान में पार्टी का चेहरा या केंद्र सरकार में कोई बड़ी भूमिका?
कुछ सूत्र ये भी बता रहे हैं कि उनकी सेहत को लेकर पार्टी के अंदर ही चिंता थी, और उन्हें ब्रेक की सलाह दी गई थी। मगर इतने बड़े पद से हटना बिना मेडिकल रिपोर्ट या डॉक्टर्स की राय के सार्वजनिक हुए — इस पर कई लोग चुप नहीं बैठ पा रहे।
राजस्थान में चुनाव और ओबीसी फैक्टर
राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा को वहां कोर ओबीसी वोटर को मजबूत संदेश देना है।
धनखड़ उस जातीय समीकरण में फिट बैठते हैं और उन्हें जमीन से जुड़ा नेता भी माना जाता है।
ऐसे में ये कयास तेज़ हैं कि कहीं इस्तीफा देकर धनखड़ को सीधा चुनावी मैदान में तो नहीं उतारा जा रहा?
क्या वे राज्य की राजनीति में कोई बड़ा मोर्चा संभालेंगे या आगे चलकर दिल्ली की राजनीति में कोई और ऊंचा पद उनके इंतज़ार में है?

विपक्ष ने क्या कहा, जनता क्या समझ रही है
विपक्षी खेमे ने अभी तक कोई सीधा बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके तेवर बता रहे हैं कि वे इस इस्तीफे को महज़ बीमारी का मामला मानकर छोड़ने के मूड में नहीं हैं।
जनता के बीच भी अलग-अलग राय है। सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं:
- अचानक इस्तीफा क्यों?
- क्या ये भाजपा की अंदरूनी खींचतान का नतीजा है?
- क्या धनखड़ पार्टी से नाराज़ थे या उन्हें नई भूमिका के लिए बाहर किया गया?
संवैधानिक प्रक्रिया क्या कहती है
अब जब उपराष्ट्रपति का पद खाली हो गया है, तो छह महीने के अंदर नया चुनाव कराना अनिवार्य है।
तब तक राज्यसभा की जिम्मेदारी उपसभापति हरिवंश के पास रहेगी।
उधर चुनाव आयोग भी नई तारीख़ों की घोषणा की तैयारी में जुट सकता है। मतलब, आने वाले महीने सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, संवैधानिक रूप से भी व्यस्त रहने वाले हैं।
भारत पल्स का निष्कर्ष
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ एक ‘रेजिग्नेशन लेटर’ नहीं है। यह केंद्र की राजनीति में कोई नई पटकथा शुरू होने का संकेत हो सकता है।
चाहे वजह स्वास्थ्य हो या राजनीतिक गणित — इस घटनाक्रम ने ये तो साफ कर दिया है कि दिल्ली की सत्ता में कुछ चल रहा है, और जनता को उसका असर जल्द दिखेगा।
भारत पल्स न्यूज़ इस पूरी स्थिति पर निगाह बनाए हुए है — क्योंकि कई बार असली खबर वो होती है, जो कही नहीं जाती।
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