विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में पारदर्शिता और ईमानदारी महत्वपूर्ण आधार हैं। फिर भी, कई देश ऐसे हैं जहां सत्ता, प्रशासन और व्यापारिक जगत गहराई तक भ्रष्टाचार की जकड़ में फंसे हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें और सर्वेक्षण बार-बार यह सवाल उठाते हैं कि आखिर किन देशों में यह समस्या सबसे गंभीर है और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति कैसी है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं हर वर्ष “करप्शन परसेप्शन इंडेक्स” जारी करती हैं। इस सूचकांक में देशों को उनकी शासन व्यवस्था, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, सरकारी तंत्र की पारदर्शिता और नागरिकों की अनुभवजन्य राय के आधार पर अंक दिए जाते हैं। जिन देशों में अंक कम होते हैं, वहां भ्रष्टाचार की जड़ें ज्यादा गहरी मानी जाती हैं।
सूची के निचले छोर पर अक्सर सोमालिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और वेनेज़ुएला जैसे देश देखे जाते हैं। इन स्थानों पर राजनीतिक अस्थिरता, गृहयुद्ध, और कुप्रशासन ने संस्थानों को कमजोर किया है। नतीजा यह है कि रिश्वतखोरी, गैरकानूनी व्यापार और सत्ता का दुरुपयोग आम बात बन चुका है।
एशियाई परिदृश्य
एशिया की तस्वीर भी कम जटिल नहीं है। अफगानिस्तान, म्यांमार और उत्तर कोरिया लंबे समय से भ्रष्टाचार के मामले में बदनाम रहे हैं। यहां सत्ता का केंद्रीकरण, पारदर्शिता की कमी और नागरिक अधिकारों पर अंकुश ने समस्या को और गंभीर बना दिया है। दूसरी ओर, सिंगापुर, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं, जहां शासन तंत्र ने सख्त कानूनों और डिजिटल निगरानी के जरिए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कोशिश की है।
भारत की स्थिति
अब सवाल यह है कि इस सूची में भारत कहां खड़ा है। भारत, जो खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है, का स्थान मध्यम स्तर पर आता है। अंतरराष्ट्रीय सूचकांकों में भारत का स्थान 80वें से 90वें पायदान के आसपास दर्ज होता रहा है। इसका मतलब यह है कि भारत पूरी तरह पारदर्शी तो नहीं है, लेकिन सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार वाले देशों की श्रेणी में भी नहीं आता।
भारतीय समाज में रिश्वतखोरी, अफसरशाही की जटिलताएं और ठेकेदारी व्यवस्था के गहरे जाल को अक्सर समस्या की जड़ माना जाता है। स्वास्थ्य, शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे क्षेत्रों में आम नागरिक का सामना सीधे-सीधे भ्रष्ट प्रथाओं से होता है। फिर भी, न्यायपालिका, मीडिया और नागरिक समाज की सक्रियता ने स्थिति को संतुलित रखने में भूमिका निभाई है।
भारत पल्स न्यूज की नजर से
मीडिया की जिम्मेदारी केवल तथ्यों को उजागर करना ही नहीं, बल्कि लोगों को जागरूक करना भी है। भारत पल्स न्यूज लगातार इस विषय पर रिपोर्टिंग करता रहा है कि किस तरह प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक संरक्षण भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि नागरिकों में सूचना का अधिकार (RTI) और सोशल मीडिया की शक्ति ने हाल के वर्षों में बड़े-बड़े घोटालों को बेनकाब करने में अहम योगदान दिया है।
प्रमुख कारण
भारत और अन्य देशों में भ्रष्टाचार के पीछे कई कारक काम करते हैं:
- राजनीतिक दलों की अपारदर्शी फंडिंग
- नौकरशाही में जवाबदेही की कमी
- सरकारी योजनाओं में ठेकेदारी प्रथा
- कानून लागू करने वाली संस्थाओं पर राजनीतिक दबाव
- नागरिक समाज की जागरूकता में असमानता
ये सभी तत्व मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं जहां ईमानदार व्यक्ति को भी मजबूरी में भ्रष्ट प्रथाओं का सहारा लेना पड़ता है।
समाधान की दिशा
भले ही तस्वीर जटिल है, पर आशा की किरणें भी हैं। भारत में डिजिटलीकरण की प्रक्रिया ने कई स्तरों पर सकारात्मक असर डाला है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना, ऑनलाइन टेंडरिंग और जीएसटी जैसे सुधारों ने अवसरों को पारदर्शी बनाया है। इसी तरह, लोकपाल संस्था और केंद्रीय जांच एजेंसियों पर निगरानी तंत्र मजबूत करने की जरूरत है।
इसके अलावा, समाज में नैतिक शिक्षा और नागरिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता को भी बढ़ावा देना जरूरी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई केवल सरकारी दायरे तक सीमित नहीं रह सकती; यह नागरिकों के सहयोग और सक्रियता से ही संभव होगी।
निष्कर्ष
दुनिया के सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार वाले देश वे हैं, जहां राजनीतिक स्थिरता और संस्थागत मजबूती नदारद है। भारत उस अंधेरे में पूरी तरह डूबा हुआ नहीं है, लेकिन चमकदार पारदर्शिता तक पहुंचने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
भारत की स्थिति मध्यम स्तर पर है—न सबसे बुरी और न ही सबसे अच्छी। लेकिन यह मध्यम स्थिति भी संतोषजनक नहीं मानी जा सकती। सुधारों की निरंतरता और नागरिकों की भागीदारी ही इस चुनौती से निपटने का वास्तविक उपाय है।
आज के दौर में जब वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा और निवेश का माहौल तेजी से बदल रहा है, भारत पल्स न्यूज जैसे मंच इस चर्चा को जीवित रखते हैं कि ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही केवल नारे नहीं, बल्कि लोकतंत्र की असली ताकत हैं।
शासन और समाज का यह साझा संकल्प ही तय करेगा कि आने वाले वर्षों में भारत किस ओर बढ़ेगा—क्या वह उन देशों की सूची से बाहर निकल पाएगा जिन्हें भ्रष्टाचार के कारण शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है, या फिर वही पुराना चक्र चलता रहेगा।
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